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________________ - ध्यान और कायोत्सर्ग १६५ और कभी गर्मी का संवेदन करता है । विपश्यना ध्यानी अनुकूल संवेदनों में राग और प्रतिकूल संवेदनों में द्वेष न करे । वह तटस्थभाव से उन्हें अनुभव करे । वह शरीर के कण-कण में चैतन्य का अनुभव करे, ज्ञान-तन्तुओं को जागृत करे । स्थूल शरीर की विपश्यना का अभ्यास हो जाने पर तैजस शरीर की विपश्यना का अभ्यास शुरू करे । हमारे शरीर में जितनी सक्रियता है वह सब तैजस शरीर ( प्राण- शरीर या विद्युत् - शरीर ) की है । इसकी विपश्यना करने वाला मन को सूक्ष्म कर उसे प्राण- केन्द्रों में ले जाए। वहां उनकी क्रिया का निरीक्षण करे । ज्योति दर्शन, विविध रंगों और आकृतियों की वस्तुओं का दर्शन इसी अभ्यास काल में होता है । जैसे-जैसे हमारा मन स्थूल से सूक्ष्म होता चला जाता है वैसे-वैसे उसके आलम्बन भी स्थूल से सूक्ष्म होते चले जाते हैं । मन की सूक्ष्मता प्राप्त होने पर हम कर्म शरीर की विपश्यना करें। हमारी सारी स्थूल प्रवृत्तियों, वृत्तियों, संवेदनाओं और संस्कारों के सूक्ष्म अंकन उसमें होते हैं । उन्हें देखने वाला वृत्तियों के मूल स्रोत का पता लगा सकता है । पुरुषाकार आत्मा की विपश्यना आत्मा अमूर्त है । मानस - चक्षु से उसे नहीं देखा जा सकता । कुछ लोग मानस - चक्षु से आत्मा को देखने का अभ्यास करते हैं, वह मानसिक कल्पना है किन्तु ध्यान नहीं । कल्पना में आरोपण होता है और ध्यान में वास्तविकता का बोध, यथार्थ का बोध । जो जैसा है उसका उसी रूप में बोध हो तभी ध्यान सत्य की खोज का माध्यम बन सकता है । कल्पना भ्रम उत्पन्न करती है । वह यथार्थ तक नहीं ले जाती । आत्मा का पुरुषाकार रूप में ध्यान करने वाला योगी अपने शरीर में आत्मा की कल्पना नहीं करता । किन्तु उसमें चैतन्य का अनुभव करता है । यह अनुभव आत्म-साक्षात्कार की भूमिका तक नहीं ले जाता किन्तु चैतन्य का अनुभव साधक को ऐन्द्रियक अनुभवों से ऊपर उठा देता है । राग-द्वेष के संस्कार शान्त और क्षीण हो जाते हैं । इस अभ्यास को दिन-रात में अनेक बार दोहराया जा सकता है । जब कभी मन खाली हो तभी उसको इस ध्यान में लगा दिया जाए । जितने समय तक वह इस ध्यान में रहे उतने समय तक उसे उसमें रखा जाए ।
SR No.032716
Book TitleMahavir Ki Sadhna ka Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya, Dulahrajmuni
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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