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________________ १६४ महावीर की साधना का रहस्य जाता है। ध्यान काल में मन की दो क्रियाएं होती हैं— चिंतन और अन्तर्दर्शन । किसी एक विषय पर चिन्तन को प्रवाहित करने पर मानसिक ध्यान बन जाता है । इसे 'विचय ध्यान' कहते हैं । इसके द्वारा पदार्थों के अव्यक्त गुण-धर्मों को व्यक्त रूप में जाना जा सकता है। किसी एक विषय को मानसिक चक्षु से देखना, मन को उन पर केन्द्रित कर देना 'विपश्यना ध्यान' है । इसके द्वारा वस्तु का स्वभाव प्रत्यक्ष है । 'विचय ध्यान' के लिए पहले कायिक ध्यान, आनापान ध्यान और वाचिक ध्यान करे । फिर किसी एक विषय को चुने । मन को उसी विषय पर लगाए रखे । किसी दूसरे विषय पर न जाने दे । प्रमादवश चला जाए तो पुनः उसी विषय पर ले जाए । कम से कम तीन घंटे तक यह अभ्यास चले । यदि तीन घंटे की अवधि में ध्येय की पूर्ति न हो तो दूसरे समय में फिर तीन घंटे अभ्यास करे । इस अभ्यास को तब तक दोहराए जब तक ध्येय की स्पष्टता न हो जाए । 'विपश्यना ध्यान' का प्रारम्भ स्थूल शरीर के आलंबन से किया जाए । जैसे-जैसे मन सूक्ष्म और संवेदनशील होता जाए वैसे-वैसे क्रमश: तैजस शरीर, कर्म शरीर और उनके विविध पर्यायों की 'विपश्यना' की जाए। फिर पुरुषाकार चैतन्य की विपश्यना की जाए । स्थूल शरीर की विपश्यना के लिए मन को सिर से पादांगुष्ठ तक और पादांगुष्ठ से सिर तक ले जाए। शरीर का कोई भी अवयव ऐसा न रहे जिस पर मन की धारा ( प्राण की धारा या चैतन्य की धारा ) प्रवाहित न हो । प्रारम्भ में एक-एक अवयव पर मन की धारा ले जाए । पक्वता होने पर एक साथ समूचे शरीर में मन की धारा प्रवाहित करे । यह अभ्यास एक बार में कम-कम- से एक घंटे तक किया जाए । इस अभ्यास-काल में अप्रमाद बना रहे । अभ्यास की परि हम निरन्तर क्रियाशील हैं । स्थूल शरीर से कभी क्रिया करते हैं और कभी नहीं करते । सूक्ष्म शरीर का क्रिया चक्र निरन्तर चालू रहता है। उसके द्वारा प्रतिक्षण कर्म का बंध और उदय होता रहता है । बंध उदय का स्पंदन स्थूल शरीर में प्रतीत नहीं होता । किन्तु उदय के स्पंदन तीव्र होकर स्थूल शरीर पर उतरते हैं तब वे प्रकम्पन या संवेदन स्थूल मन की पकड़ में आते हैं । विपश्यना काल में हमारा मन कभी सुख की संवेदना को पकड़ता है और कभी दुःख की संवेदना को पकड़ता है । कभी सर्दी का संवेदन करता है
SR No.032716
Book TitleMahavir Ki Sadhna ka Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya, Dulahrajmuni
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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