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________________ ध्यान और कायोत्सर्ग के चार-चार स्तर हैं । क्रोध चेतना के चार स्तर १. चिरतम — पत्थर की रेखा के समान । २. चिरतर - मिट्टी की रेखा के समान । ३. चिर - बालू की रेखा के समान । ४. अचिर- जल की रेखा के समान । मान चेतना के चार स्तर १. कठोरतम — पत्थर के खम्भे के समान । २. कठोरतर — अस्थि के खम्भे के समान । ३. कठोर — कठोर - काष्ठ के खम्भे के समान । ४. मृदु-लता के खम्भे के समान । माया चेतना के चार स्तर १ वक्रतम - बांस की जड़ के समान । २. वक्रतर- -मेढ़े के सींग के समान । ३. वक्र - चलते बैल की मूत्रधारा के समान । ४ प्रायः ऋजु – छिलते बांस की छाल के समान । लोभ चेतना के चार स्तर १. गाढतम - कृमि रेशम के समान । २. गाढतर - कीचड़ के समान । ३. गाढ — खंजन के समान । १५६ ४. प्रतनु-हल्दी के रंग के समान । इन चारों मनोवृत्तियों की चेतना को एक शब्द में 'कषाय चेतना' कहा जाता है । इसके प्रथम स्तर के प्रकंपनों के होते हुए ध्यान की स्थिति नहीं बनती । कषाय-चेतना के प्रथम स्तर के प्रकम्पनों को शान्त या क्षीण करने वाला व्यक्ति ध्यान की प्रथम अवस्था ( सम्वत्व चेतना) को प्राप्त करता है । कषाय-चेतना के दूसरे स्तर के प्रकम्पनों को शांत या क्षीण करने वाला व्यक्ति ध्यान की दूसरी अवस्था ( व्रत चेतना) को प्राप्त करता है । कषाय-चेतना के तीसरे स्तर के प्रकम्पनों को शांत या क्षीण करने वाला
SR No.032716
Book TitleMahavir Ki Sadhna ka Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya, Dulahrajmuni
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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