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________________ १५८ महावीर की साधना का रहस्य • मानसिक ध्यान की प्रथम अवस्था में स्नायविक तनाव कम होते हैं । .. प्रसन्नता बढ़ती है। .. इससे शारीरिक और तनावजन्य रोग शांत होते हैं। • मानसिक कार्यक्षमता और सहिष्णुता का विकास होता है। • मनोवृत्तियों और मानसिक व्यवहारों में परिवर्तन होता है। . आदतें बदलती हैं। वैज्ञानिक शोध से प्राप्त निष्कर्ष भी इस तथ्य की पुष्टि करते हैं। स्टैनफर्ड रिसर्च इंस्टिट्यूट के डॉ० लियोन ओटिस ने १९७२ में एक कंट्रोलयुक्त शोध कार्यक्रम में ५७० ध्यानियों की जांच की । इनमें ४६ अफीमची थे, और उनमें से ३५ ने छह महीने के ध्यान का अभ्यास करने के बाद अफीम छोड़ दी। __इसकी दूसरी अवस्था में ईर्ष्या, विषाद, शोक, दुश्चिन्ता आदि-आदि रागद्वेष से उत्पन्न होने वाले मानसिक दुःख क्षीण हो जाते हैं। मैत्री, समभाव आदि गुण विकसित हो जाते हैं। इसकी तीसरी अवस्था में सर्दी-गर्मी आदि का संवेदन और मानसिक संस्कारों के मूल क्षीण होने लग जाते हैं। __इसकी चतुर्थ अवस्था में कष्टों से विचलन और भय सर्वथा नहीं होता । सूक्ष्म तत्त्वों (Invisible Substances) का स्पष्ट ज्ञान हो जाता है। मोह या म्रम की स्थिति समाप्त हो जाती है। शरीर और आत्मा का भेदज्ञान स्पष्ट हो जाता है । जितने संयोग हैं वे सब पृथक्-पृथक् दीखने लग जाते हैं । सब प्रकार के विजातीय तत्त्वों का विसर्जन करने की क्षमता तीव्र हो जाती है । कहीं भी आसक्ति का भाव नहीं रहता। प्रकम्पनों के हेतु और उनका निरोध प्रकम्पन के मूल हेतु दो हैं-राग और द्वेष । ये दो प्राणिमात्र की मौलिक मनोवृत्तियां हैं । इनके द्वारा वस्तु-जगत् के प्रति आकर्षण और विकर्षण होता है । कुछ वस्तुओं के प्रति प्रियता का भाव होता है और उनके प्रति हम आकर्षित हो जाते हैं। कुछ वस्तुओं के प्रति अप्रियता का भाव होता है और उनके प्रति हम विकर्षित हो जाते हैं । यह आकर्षण और विकर्षण की चेतना प्रकंपन पैदा करती है। रागचेतना माया और लोभ-इन दो रूपों में प्रकट होती है । द्वेषचेतना क्रोध और अभिमान-इन दो रूपों में प्रकट होती है । इन मनोवृत्तियों
SR No.032716
Book TitleMahavir Ki Sadhna ka Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya, Dulahrajmuni
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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