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________________ शरीर का संवर करना है १. हम भोजन किस भावना से ग्रहण कर रहे हैं २. भोजन में कौन-कौन से पदार्थ ग्रहण कर रहे हैं ? १४१ ये दोनों प्रश्न हमारे लिए बहुत ही महत्त्वपूर्ण हैं । भोजन क्यों ले रहे हैं ? क्या पेट भरने के लिए भोजन ले रहे हैं ? यदि पेट भरने के लिए ही भोजन ले रहे हैं, तो वह बहुत ही स्थूल बात है । यह पेट गढ़ा तो है नहीं । लोग गढ़े को कूड़ाकरकट डालकर भर देते हैं । पेट को हम गढ़ा तो बना नहीं सकते । जो भी, जैसी भी वस्तु हमारे सामने आए, उसे खाकर पेट को भर दें - यह हो नहीं सकता । जो चीजें हम लेते हैं, उनका हमारे शरीर पर ही नहीं, मन पर भी बहुत ज्यादा असर होता है । इसलिए यह बहुत ही महत्त्वपूर्ण बात है कि हम लेने वाली चीजों पर ध्यान दें, भोजन लेने की भावना पर ध्यान दें। भोजन का हमारे विचारों पर भी अप्रत्यक्ष और सूक्ष्म रूप से प्रभाव पड़ता है । भोजन लेते हैं हम जीवन चलाने के लिए। इसके साथ ही यह प्रश्न जुड़ा है कि हम जीवन को धारण क्यों करें ? किसी महान् उद्देश्य की पूर्ति के लिए जीवन को धारण करना, उस उद्देश्य की पूर्ति के लिए शरीर को धारण करना और शरीर को धारण करने के लिए भोजन को ग्रहण करना - ये तीन बातें हैं । हमारा उद्देश्य है— चेतना का विकास, चेतना का उन्नयन, चेतना का ऊर्ध्वगमन । इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए हम शरीर को धारण करते हैं । चेतना का विकास करने के लिए शरीर को धारण करना है और शरीर को धारण करने के लिए भोजन ग्रहण करना है । तो भोजन में हमें उन्हीं तत्त्वों को ग्रहण करना हैं जो हमारी चेतना के विकास में बाधक न बनें, सहायक बनें । भोजन में लिए जाने वाले पदार्थों के कारण यदि आपकी वासना उत्तेजित हुई, क्रोध अधिक आया, भय अधिक लगा अथवा अन्य बुरी भावनाओं ने जन्म लिया तो आपकी चेतना का विकास रुक जाएगा । भोजन आपके विकास में बाधक हो जाएगा । भोजन करते समय इस बात पर अवश्य ध्यान देना है कि जो पदार्थ हम ले रहे हैं, वे हमारे मन और विचारों पर क्या असर करेंगे । हम उपवास करते हैं । दो दिन, चार दिन या और अधिक दिन का उपवास करते हैं । उस समय हम अनुभव करेंगे कि हमारी इन्द्रियां शान्त होती जा रही हैं, हमारे आवेग शान्त होते जा रहे हैं, सब कुछ ठीक हो रहा है । किन्तु जैसे ही हमने भोजन करना शुरू किया, रस का परिपाक शुरू हुआ, शक्ति का निर्माण आरंभ हुआ, वैसे ही हमें अनुभव होगा कि जो दीपक
SR No.032716
Book TitleMahavir Ki Sadhna ka Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya, Dulahrajmuni
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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