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________________ १४२ महावीर की साधना का रहस्य बुझ रहा था वह पुनः प्रज्वलित हो उठा मानो अग्नि में और घी डाल दिया गया हो । शक्ति का निर्माण होते ही हमारा मन फिर दौड़ना शुरू कर देता है। हमारी वासना दौड़नी शुरू हो जाती है। मतलब यह हुआ कि खाना बन्द तो मन और इन्द्रियों की सक्रियता भी बन्द और खाना प्रारम्भ तो मन और इन्द्रियों की दौड़ भी प्रारम्भ । हम सात दिनों का उपवास करें, बहुतसी बातें याद आनी बन्द हो जाएंगी। इसका तात्पर्य यह है कि शरीर में जब शक्ति होती है तभी ये सब उन्माद पैदा होते हैं । शरीर की शक्ति कम हो जाए तो उन्माद भी बन्द हो जाते हैं, उनके द्वार बन्द हो जाते हैं । शायद इसीलिए अशन के साथ अनशन का विधान है। भोजन करने के साथ भोजन छोड़ने की बात जुड़ी हुई है । हम भोजन छोड़ नहीं सकते । हमें किसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए भोजन ग्रहण करना ही पड़ेगा। इसका अर्थ तो यह हुआ कि दो दिन का हम उपवास कर लें तो इन्द्रियां शान्त और फिर भोजन आरम्भ करें तो इन्द्रियों की दौड़ का भी प्रारम्भ। इस तरह हम कब तक लड़ सकेंगे? यह तो देवासुर संग्राम जैसा हो गया । कभी हम इन्द्रियों को सताएं तो कभी इन्द्रियां हमें सताएं । पूरा खाना छोड़ नहीं सकते और पूरा छोड़े बिना इन्द्रियां शांत नहीं हो सकतीं। यह बहुत बड़ी समस्या है। हमारे उद्देश्य की पूर्ति के लिए शरीर आवश्यक है। शरीर के लिए भोजन आवश्यक है । हम अनशन करके बैठ नहीं सकते । फिर हम क्या करें ? इसका समाधान भी हमें प्राप्त है। हम जो खाएं, वह चेतना के विकास की भावना के साथ खाएं और जो उसमें सहायक हो, वही खाएं । __ एक बार आयुर्वेद के महान् आचार्य महर्षि चरक पक्षी का रूप बनाकर वाग्भट के घर पर जाकर बैठ गए और बोले-'कोरुक् ? कोरुक् ? कोरुक् ? -स्वस्थ कौन ? स्वस्थ कौन ?' स्वस्थ कौन ?' वाग्भट ने उसे आश्चर्य के साथ सुना । वे स्वास्थ्य के मर्म को जानते थे । वे बोले-'हितभुक्, हितभुक्, हितभुक्-स्वस्थ वह है जो हितभोजी है । स्वस्थ वह है जो हितभोजी है। स्वस्थ वह है जो हितभोजी है।' पक्षी फिर बोला-'कोरुक् ? कोरुक् ? कोरुक् ?–स्वस्थ कौन ? स्वस्थ कौन ? स्वस्थ कौन ? वाग्भट ने उत्तर दिया-'मितभुक्, मितभुक्, मितभुक्–स्वस्थ वह है जो मितभोजी है। स्वस्थ वह है जो मितभोजी है। स्वस्थ वह है जो मितभोजी है।' पक्षी ने फिर प्रश्न किया-'कोरुक् ? कोरुक् ? कोरुक् ?--स्वस्थ कौन ? स्वस्थ कौन ? स्वस्थ कौन ?' वाग्भट ने उत्तर दिया-'ऋतभुक्,
SR No.032716
Book TitleMahavir Ki Sadhna ka Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya, Dulahrajmuni
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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