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मन
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• यह एक सिद्धांत की बात है। हमें इसका अनुभव नहीं होता । क्यों ? ___ जब हम सोते हैं तब हमारा स्थूल मन निष्क्रिय हो जाता है। उस समय ज्ञान की क्रिया चालू रहती है । हमें स्वप्न आता है, अनुभव भी होता है । वह किसके द्वारा होता है ? जब हम गहरी अनुभूति में होते हैं उस समय अवचेतन मन में चले जाते हैं । अवचेतन मन जो क्रिया करता है, जिस शक्ति और सामर्थ्य से करता है, वह स्थूल मन कभी नहीं कर सकता। अवचेतन मन की तुलना में चेतन मन की शक्ति बहुत अल्प है। आज के मानसशास्त्री
और पुराने योगी, जिन किन्हीं ने भी गहराई में पैठने का प्रयत्न किया वे वास्तविकता तक पहुंचे। उन्होंने सूक्ष्म चेतना का प्रतिपादन किया । वह भले ही हमें आंखों से न दीखे, किन्तु वह अनुभव से परे नहीं है। गहरे में उतरने पर सूक्ष्म शक्ति की अपेक्षा अवश्य होगी। उसका नाम कुछ भी रखें। ध्यान द्वारा उसका अनुभव भी होगा कि स्थूल शरीर से हटकर हम किसी ऐसे शरीर में जा रहे हैं जो शक्ति का बहुत बड़ा केन्द्र है, स्थूल मन से हटकर किसी ऐसी सूक्ष्म चेतना में जा रहे हैं जो बहुत बड़ा प्रकाश केन्द्र है । • हम इसे मान्यता-मर समझ लें, उसमें उलझे नहीं। वर्तमान को सामने रखकर चलें, क्या इतना काफी है ? ___ यह ठीक है । उलझने की जरूरत नहीं है। हमें चलना तो हमेशा ही वर्तमान से होगा, स्थूल से चलना होगा । हम इस नियम को न भूलें कि हमारी गति स्थूल से सूक्ष्म की ओर होती है, सूक्ष्म से स्थूल की ओर नहीं होती। ध्यान में स्थूल का आलम्बन लेते हैं, फिर सूक्ष्म की ओर जाते हैं। व्यावहारिक बात यह है कि हम स्थूल से सूक्ष्म की ओर चलें। हमारा लक्ष्य स्थूल से सूक्ष्म तक पहुंचने का हो । स्थूल के स्तर पर सूक्ष्म को अस्वीकार न करें। सूक्ष्म तक पहुंचने पर स्थिति अपने आप स्पष्ट हो जाती है । स्थूल में ही उलझ जाते हैं तो फिर आगे नहीं बढ़ सकते। • मन के निवास के बारे में आप और स्पष्ट करें। ___कुछ लोग कहते हैं कि मन समूचे शरीर में रहता है और कुछ लोग कहते हैं कि वह शरीर के अमुक-अमुक हिस्से में रहता है । ये दोनों बात सापेक्ष इसलिए कि हमारा जो भी ज्ञान प्रकट हो रहा है उसका मुख्य केन्द्र है मस्तिष्क-बृहद् मस्तिष्क, लघु मस्तिष्क और उसके नीचे का पृष्ठरज्जु का हिस्सा । हमारा ज्ञान ज्ञानवाही नाड़ियों के द्वारा मस्तिष्क तक पहुंचता है। इसलिए मानना चाहिए कि मन का मुख्य केन्द्र मस्तिष्क है। इस कोण से