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________________ ११६ महावीर की साधना का रहस्य कहा जा सकता है कि मन का निवास मस्तिष्क में है । उसकी क्रिया ज्ञानवाही तंतुओं के माध्यम से सारे शरीर में होती है । इसलिए हम कहें कि मन सारे शरीर में व्याप्त है, तो यह कहा जा सकता है । यदि दोनों अपेक्षाओं को ठीक समझ लें तो दोनों बातें कहने में कोई कठिनाई नहीं है । • चित्त और बुद्धि का सम्पर्क मन के साथ है या तीनों एक हैं ? बुद्धि मन से अलग वस्तु है । मन इन्द्रियों की सहायता से अपना कार्य करता हैं । बुद्धि मन की सहायता से अपना कार्य करती है । हम पुस्तकों को पढ़कर या सुनकर जानते हैं, यह सब विद्या है, बुद्धि नहीं । बुद्धि सहजात होती है । मानस-शास्त्रियों ने भी यह स्वीकार किया है कि बुद्धि जन्म के साथ ही उत्पन्न होती है । बाद में उसका विकास नहीं होता । साधारणतया हम कहते हैं कि बुद्धि का विकास हो गया, किन्तु सूक्ष्म दृष्टि से यह बात सही नहीं है । बुद्धि का कभी विकास नहीं होता । जन्म - काल में जितनी बुद्धि होती है उतनी ही रहती है । वह न घटती है और न बढ़ती है । विद्या का विकास होता है । वह बाहर से आती है । बुद्धि बाहर से नहीं आती । निर्णय करना, विवेक करना बुद्धि का काम है । एक आदमी बिलकुल ही पढ़ा-लिखा नहीं होता, फिर भी सही निर्णय लेता है और ढंग से काम करता है । वह ऐसा बुद्धि के द्वारा करता है । वह विद्यावान् नहीं है किन्तु बुद्धिमान् है । बुद्धि का चमत्कार विद्या से बहुत अधिक है । बुद्धि के उच्च स्तर को हम प्रतिभज्ञान भी कह सकते हैं । जिसे हमने कभी सुना नहीं, जाना नहीं, ऐसी वस्तु हमारे सामने आ गयी, उसके बारे में बुद्धि निर्णय ले सकती है, उसका विश्लेषण कर सकती है । उसमें ऐसी क्षमता हैं । मन का काम इन्द्रियों के द्वारा जो प्राप्त करता है उसका संकलन और विश्लेषण करना मात्र है । किंतु जो नया ज्ञान उत्पन्न होता है वह सारा का सारा बुद्धि के द्वारा होता है । इन्द्रिय-स्तर की चेतना से अधिक समर्थ मानस-स्तर की चेतना है और उससे अधिक समर्थ बौद्धिक स्तर की चेतना है । यह इन्द्रिय-स्तर और अतीन्द्रियस्तर का मध्यवर्ती चेतना का स्तर है । • अब आप चित्त के बारे में भी बताएं । सामान्य भाषा में मन और चित्त को एक कहा जाता है । किन्तु गहरे में जाने पर चित्त बुद्धि का ही पर्याय है । • मन ही बंध और मोक्ष का कारण है । क्या यह सही है यह कहा जाता है कि मन बांधता है और वही मुक्त करता है । यह इतना
SR No.032716
Book TitleMahavir Ki Sadhna ka Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya, Dulahrajmuni
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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