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________________ वाक्-संवर-२ १०३ अब इस डेसीबल के आधार पर अपनी ओर ध्यान दीजिए । बीस डेसी - बल तक मनुष्य के लिए कोई कठिनाई पैदा नहीं होती । उसकी नींद में कोई विघ्न या बाधा नहीं होती । घड़ी टिक टिक करती हुई चल रही है । आपकी नींद में सामान्यता कोई बाधा नहीं आएगी। आपका काम चल जाएगा । आपको नींद आ जाएगी। कोई फुसफुसा रहा है तब भी आपकी नींद में कोई बाधा नहीं आएगी । किन्तु पचास डेसीबल के बाद ध्वनि हमें अप्रिय लगने लगती है और इसका हमारे शरीर तन्त्र पर प्रभाव पड़ने लग जाता है । हमारे कामों में वाधा उपस्थित हो जाती है । आज जहां वाहनों की खड़खड़ाहट, फैक्टरियों की आवाज, या लड़ाई के दिनों में जब दस-दस, बीसबीस जेट एक साथ गुजरते हैं. उस समय मनुष्य बिलकुल बहरा जैसा हो जाता है । आज कितना कोलाहल है और उस कोलाहल का प्रभाव क्या होता है ? पचास डेसीबल से अधिक ध्वनि हमारे कानों में से निकलती है तो वह श्रवण शक्ति पर प्रभाव डालती है। बहुत सारे लोग बधिर बन जाते हैं । कारखानों में काम करने वाले बहुत जल्दी बधिर बन जाते हैं । हृदय की बीमारी मस्तिष्क की शक्ति का ह्रास, पागलपन – ये सारे कोलाहल के कारण बनते हैं । इस दृष्टि से हम सोचें तो दुनिया को कोलाहल-मुक्त बनाने की दिशा में फिर से हमारा प्रस्थान होना चाहिए। हमारी यात्रा उलटी चलनी चाहिए, मौन की दिशा में । बोलते-बोलते मनुष्य ने ऐसी ध्वनियों का आविष्कार कर लिया, कि वे आज मनुष्य के लिए स्वयं बहुत बड़ी घातक बन रही हैं । बहुत सारे लोग शान्त वातावरण में रहना चाहते हैं परन्तु उनको ऐसा अव सर ही नहीं मिलता । दिल्ली में अध्यात्म - साधना केन्द्र बना, और दिल्ली शहर से बाहर बना ताकि एकान्त रहे । किन्तु कठिनाई हो गयी कि हवाईअड्डे की रेंज में आ गया। जब हवाई जहाज गुजरते हैं तो शहर से जो बचाव किया गया था, उसकी सारी कसर निकाल देते हैं । एकान्त भंग और मौन भंग हो जाता है । मैं समझता हूं कि मौन का अर्थ था— एकान्त । पुराने जमाने में मौन का अर्थ न बोलना तो था ही, किन्तु उसके साथ एकान्त भी था । पूज्यपाद एक बहुत बड़े आचार्य हुए हैं । उन्होंने लिखा 'वाक् क्यों होती है ? हमें बोलने की जरूरत क्यों होती है ? दो कारण से जरूरत होती है । एक तो अपने मानसिक विकल्पों के कारण होती है । मानसिक चंचलता, मानसिक विकल्प इतने तीव्र हो जाते हैं कि हम अपनी
SR No.032716
Book TitleMahavir Ki Sadhna ka Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya, Dulahrajmuni
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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