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________________ १०२ महावीर की साधना का रहस्य बढ़ती है । इसका मतलब यह हुआ कि हम बहुत तेजी से न बोलें, बहुत जल्दीबाजी में न बोलें। जल्दबाजी में बोलने की अपेक्षा, विलंबित बोलते हैं और एक लम्बी मात्रा के साथ बोलते हैं तो उसकी शक्ति में परिवर्तन आ जाता है । आप लोग 'अर्हम्' का जप करते हैं। केवल उच्चारण ही नहीं, उसकी एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है। उच्चारण किस प्रकार होना चाहिए ? मंत्र-शास्त्रीय दृष्टि से या ध्वनि-शास्त्रीय दृष्टि से 'अर्हम'—के अ, ई, म्, बिंदु और नाद-ये पांच विभाग होते हैं । 'अ' का उच्चारण होना चाहिए ह्रस्व, 'हे' का उच्चारण होना चाहिए दीर्घ और 'म' का उच्चारण होना चाहिए द्रुत । यहां तक हमारी ध्वनि स्थूल रहती है। अब 'म्' के बाद फिर हम लोटते हैं-प्रत्यावर्तन करते हैं और बिन्दु तक आते-आते हम सूक्ष्म में आ जाते हैं । और नाद तक पहुंचते-पहुंचते हम सूक्ष्मतम ध्वनि में चले जाते हैं। इस प्रकार उच्चारण ह्रस्व मात्रा से शुरू हुआ, वह अन्त में जहां समाप्त होता है, अति सूक्ष्म ध्वनि में बदल जाता है । हमारा उच्चारण स्थूल से सूक्ष्म होता चला जाता है । स्थूल में उतनी शक्ति नहीं है ग्रन्थि-भेदन की, जितनी शक्ति सूक्ष्म में है । उच्चारण जैसे सूक्ष्म होगा, वैसे ही उसमें शक्ति बढ़ती चली जाएगी और वह बहुत ही सूक्ष्मता से काम करेगा। स्थूल ध्वनि व्यावहारिक दृष्टि से भी हमें प्रिय नहीं होती। आजकल ध्वति पर बहुत अनुसन्धान हो रहे हैं । कोलाहल पर भी बहुत अनुसंधान हो रहे हैं । यह इतना जो शोर-शराबा, वाहनों का कोलाहल, वायुयानों, वाहनों तथा फैक्टरियों का शोर बढ़ गया है, शहर में रहने वाले लोग बिलकुल व्याकुल हो रहे हैं । हिन्दुस्तानियों को आज भी उतना अनुभव नहीं हो रहा है । विकसित कहलाने वाले राष्ट्रों के देखिए, उनकी आज क्या स्थिति है ? क्या दशा है ? ___ डॉ० ग्राहमबल ने ध्वनि का अनुसंधान किया। इसीलिए ध्वनि की अनुमापन पद्धति का नाम ही रख दिया---'डेसीबल'। मैं आपके सामने थोड़े से आंकड़े रखता हूं। आप देखें कि वे कितने आश्चर्यकारी हैं। ____ 'डेसीबल' शोर की इकाई है । शोर सोनोमीटर या ध्वनिमापी से नापा जाता है । पत्तियों की मरमराहट होती है, उसका माप है दस डेसीबल । कानाफूसी का अनुमापन बीस डेसीबल होता है। घड़ी की टिक-टिक का माप है तीस डेसीबल । टाइप की खड़खड़ाहट का माप पचास डेसीबल होता है। जेट विमानों का होता है, एक सौ पचास डेसीबल ।
SR No.032716
Book TitleMahavir Ki Sadhna ka Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya, Dulahrajmuni
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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