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________________ वाक्-संवर-२ १०१ मौन की भाषा सबसे समर्थ और अच्छी भाषा होती है। उसमें किसी संदेह के लिए अवकाश नहीं रहता। हमारे शब्दों में, बोलने में तो बहुत अवकाश रहता है । मैं कुछ कहना चाहता हूं और सामने वाला व्यक्ति कुछ पकड़ लेता है। बड़ी कठिनाइयां भी होती हैं। बातचीत पकड़ने में तथा पत्रों के आदान-प्रदान में भी काफी कठिनाइयां होती हैं। एक-दूसरे की बात को दूर बैठा व्यक्ति ठीक से पकड़ नहीं पाता । किंतु यह अन्तः-संप्रेषण या मौन के द्वारा कही जाने वाली बात है, उसे पकड़ने में कोई विशेष कठिनाई का अनुभव नहीं होता। __ हम मौन भाषा का विकास करें, यह अपेक्षित है। और इसीलिए मौन अपेक्षित है । कल मैंने कहा था कि वाक्-संवर का क्या महत्त्व है ? वाक्संवर का क्या अर्थ है और वह कैसे किया जा सकता है ? अब उसके नीचे की जो भूमिकाएं हैं अर्थात् वाक्-संवर का संवर तो उनमें है किन्तु पूरा संवर नहीं है, उन भूमिकाओं के बारे में भी कुछ बातें मैं आप लोगों के समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूं। स्वाध्याय या संकल्प आदि सारे भाषा के प्रयोग हैं। कल जैसे मैंने चर्चा की थी कि स्थूल, सूक्ष्म, सूक्ष्मतर और सूक्ष्मतम-ये भाषा के उच्चारण के स्तर होते हैं। एक स्थूल उच्चारण करते हैं, एक सूक्ष्म उच्चारण करते हैं, एक सूक्ष्मतर करते हैं और एक सूक्ष्मतम करते हैं। उन उच्चारणों का यौगिक दृष्टि से क्या मूल्य है और व्यावहारिक दृष्टि से क्या मूल्य है-इस पर हम थोड़ा-सा विचार करें। एक व्यक्ति द्रुत उच्चारण करता है। एक व्यक्ति मध्यम उच्चारण करता है । एक व्यक्ति विलंबित उच्चारण करता है । उच्चारण करने में भी परिवर्तन आ जाता है। यद्यपि सूक्ष्म तक वह नहीं पहुंचता । किंतु उच्चारण करने की प्रक्रिया में भी अन्तर आ जाता है । योग के अनुसार हमारी सुषुम्ना ब्रह्म-रन्ध्र से सम्बद्ध है। वहां से एक रस का स्राव होता है । वह स्राव नीचे तक जाता है। योग का सिद्धान्त है कि जो व्यक्ति द्रुत उच्चारण करता है, तेजी से उच्चारण करता है, उस समय सुषुम्ना से टपकने वाले रस के नौ बिंदु स्रवित होते हैं। जो व्यक्ति मध्यम उच्चारण करता है, उसके बारह बिंदुओं का स्राव होता है और जो विलंबित उच्चारण करता है, उसके सोलह बिंदुओं का स्राव होता है। इस प्रकार स्राव की मात्रा बढ़ जाती है। वह अमृत का स्राव कहलाता है । वह स्राव जितना अधिक होता है, उतना ही लाभदायी माना जाता है। नौ बिन्दु, बारह बिंदु और सोलह बिन्दु-इस प्रकार स्राव की मात्रा
SR No.032716
Book TitleMahavir Ki Sadhna ka Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya, Dulahrajmuni
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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