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वाक् - संवर-२
अभी मौन वक्तव्य की बात चल रही थी । यह असम्भव बात नहीं है । हम लोग ऐसा करते भी हैं किंतु जानते नहीं और मैं समझता हूं कि बहुत सारे व्यक्ति अपनी मौन भाषा में दूसरों को बहुत कुछ समझा देते हैं । और जिन दो व्यक्तियों का परस्पर गहरा सम्बन्ध स्थापित हो जाता है, वे मौन की भाषा को बहुत अच्छी तरह समझ भी लेते हैं । अथवा जिन दो व्यक्तियों की शक्ति का विकास हो जाता है, वे भी मौन की भाषा को समझ लेते हैं । जैन आगमों का एक प्रसंग है कि अनुत्तर विमान के देवता नीचे नहीं आते, मनुष्यलोक में नहीं आते । जब उनके मन में कोई जिज्ञासा उत्पन्न होती है, तब वे वहीं से अपने विचारों को प्रेषित करते हैं । वे विचार मनुष्यलोक में पहुंचते हैं। यहां जो व्यक्ति सर्वज्ञ होता है, विशिष्ट ज्ञानी होता है, वह उन विचारों को पकड़ लेता है । पकड़कर उसका उत्तर दे देता है, बिना बोले । केवल मानसिक उत्तर देता है, मन में उसका उत्तर दे देता है । और वह उत्तर उन तक पहुंच जाता है । यह है मौन सम्प्रेषण, मौन वचन | बोलने की कोई जरूरत नहीं । इसका विकास आज सामान्य है । टेलीपैथी के काफी प्रयोग हुए हैं और हो रहे हैं । भी हुए हैं । योग के क्षेत्र में भी ऐसे प्रयोग होते हैं । और हमारे व्यावहारिक जीवन में भी एसे बहुत से प्रयोग होते हैं । मेरे मन में कोई उत्कट बात उत्पन्न हो गयी । और मैं जिस सम्बद्ध व्यक्ति को कहना चाहता हूं, वह ग्रहणशील है या मेरे साथ निकट का सम्बन्ध रखता है तो बिना कहे मेरी बात को पकड़ लेगा । हमने पचासों बार ऐसा देखा । एक व्यक्ति के मन की बात दूसरा व्यक्ति पकड़ लेता है । और एक क्षण में एक ही शब्दावली दोनों व्यक्ति बोलने लग जाते हैं । उधर वह कहता है और इधर वह कहता है । और मैं समझता हूं कि ऐसी घटना तो अनेक लोगों के जीवन में घटित होती है । यह विचार संप्रेषण, टेलीपैथी का प्रयोग, यह मौन भाषा, इसे समने में कोई कठिनाई नहीं है । थोड़ी-सी पद्धति से इसका प्रयोग करें तो और सुविधापूर्वक इस बात को पकड़ सकते हैं ।
स्तर पर भी हो रहा
और वे बहुत सफल