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॥ पिण्डनिरूपणम् ॥
चउरिंदियाण मच्छियपरिहारो आसमच्छिया चेव।
पंचेंदियपिंडंमी उ अव्ववहारी उ नेरइया॥६४॥ चउरिंदियाण गाहा। व्याख्या- 'चउरिंदियाण मच्छियपरिहारो'त्ति वमिए मच्छियापुरीसो घेप्पति विसूचिगादिसु च। आसमक्खिया चेव अक्खरफेडणत्थं, पंचिंदियपिंडम्मि तु सव्वं चेव उवयुजति णवरं अववहारी उ रइय त्ति गाथार्थः॥६४॥ तथा चाह
चम्मट्ठि-दंत-नह-रोम-सिंग-अमिलादिछगण-गोमुत्ते।
खीर-दहिमाइयाण य पंचिंदियतिरियपरिभोगो॥६५॥ चम्मट्ठि० गाहा। व्याख्या- चम्मं चम्मकोसगादीसु, अट्ठी-दन्त-णह-रोम-सिंगादयो तेसु तेसु अणियतकज्जेसु, जहा- पायादौ दुट्टवाते गिद्धट्ठि, अच्छिफुल्लगे सूअरदाढालेवो, धूवज्जत्तीए णहा, "अमिलारोमेसु लोचिकादयः, अडविसंभमपब्भट्ठमेलणट्ठाए सिंग अण्णेसु वा, एवमादीसु पयोयणेसु त्ति। तहा छगणगोमुत्ता हत्थसंघमणपिल्लेवणाइसु, खीरदहिमादियाण य वातादिसु सत्सु, पंचिंदियतिरियपरिभोगो क्षीरादीनां तत्कार्यत्वात् कारणे कार्योपचारात् पञ्चेन्द्रियतिर्यक्परिभोग इति सा द्वयं(?) गाथार्थः॥६५॥ मणुएसु पुण
सच्चित्ते पव्वावण पंथुवदेसे य भिक्खदाणादी।
सीसट्ठिग अच्चित्ते मीसट्टिसरक्ख पहपुच्छा॥६६॥ सचित्ते गाहा। व्याख्या- मणुस्से सच्चित्ते पव्वावणं पंथुवदेसे य विणियोगो भिक्खादाणादी आदिसद्देण वत्थादिपरिग्गहो, 'सीसट्ठिग अच्चित्ते' त्ति योगादिनिमित्तं जहासंखेण पयोयणं । 'मीसट्ठिसरक्ख-पहपुच्छ'त्ति अट्ठिसरक्खो कावालिओ पंथं वा पुच्छिज्जइ विजा-मंतादि व त्ति गाथार्थः॥६६॥
खमगादि कालकजादिएसु पत्थिजा देवयं किंचिं।
पंथे सुभाऽसुभे वा पुच्छेजह दिव्वमुवओगो॥६७॥ खमा(?मगा)दि गाहा। व्याख्या- खमगो आतावगो वा कालकज्जे आदिसद्दातो कुलका-दिपरिग्रहः, किम् ? पत्थेज देवयं किंचि अंबाइयं वा णेव्वाणिं वा। तहा पंथे विसमदुग्गमे (टि०) १. अणेयक० जि१॥ २. पायादिदु० जि०॥ ३. अच्छिदुल्लगे ला०॥ ४. संभवपन्भ० जि१॥ ५. पंथुवदेसादि भिक्खादि खं०॥ ६. सरक्खा पहि वा०॥ ७. पहि पुच्छा वा०। ८. महासंखेण जि० ला०॥ ९. पुच्छति विजा० जि१॥ १०. पंथसुभा० खं०॥ ११. पुच्छेज जि१। अत्थेज ला० ॥ १२. किंचित् संठाइयं वा णे० जि१॥ (वि०टि०) .. परिहारो = पुरीषं इति ला० टि०॥ *. वमिए = वमनार्थ इति ला० टि०॥ .. अच्छिसु अक्खरफेडणत्थं इति ला० टि०॥. गृध्रास्थिफलकं पादे बध्यते इति ला० टि०॥. अमिला = उरभ्र ला० टि०॥