SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 365
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ શ્રીયદુવંશપ્રકાશ (प्रथम) 1 જામશ્રી વિભાજી નાશિકથી પ્રયાગરાજ (અલહાબાદ) પધાર્યા. ત્યાંથી મથુર અને ત્યાંથી કાશી પધાર્યા તે વિષેનાં કાવ્ય – ॥त्रीवेणी विषे कवित ॥ जान्हवि न्हावे हुते, मानवि निःपाप होत । आनबि न शंका मन, बेदन बताय हे ॥ कालंदिह न दी सोतो, कलीके कलुख मेटे । अलुक तें होत हंस, व्यासमुख गाय हे ॥ सरस्वति गति अति, जति सति सेवत हे। सुमति प्रकाश होत, कुमति दुरायहे ॥ बेनी तीन भेली भयी, ताहीतें त्रीबेनी नाम । जामविभा मंजे पुन्य, पृथिमें सवाय हे ॥१॥ . ॥श्री गोकुल मथुरां वर्णन कवित ॥ चारजुगहुंकी पुरी, मथुरां पुरानो धाम ॥ जाम जु बिभेश ताम, पेखी सुख पाय हैं। कृश्नकी जनम भोम, ताहीसर ओर कोन ॥ वासुदेवको निवास, तहांही बताय हे ॥ गादी यदुवंशहुकी, उग्रसेन राजकीनो ॥ देखत परम धाम, भुप मन भाय हें ॥ धन्य धन्य जामविभा, निहारे अनोप धाम ॥ ठाम ठाम शोभा बनी, गनी नह, जाय हें ॥२॥ गोकुलसो ग्राम देखे, कृश्न बिसराम देखे ॥ बंदाबन ठाम देखे, निकी बीध जाय के ॥ गोरधननाथ देखे, जमुना सपाथ देखे ॥ देवगनसाथ देखे, महद् मनाय के ॥ पुंज कुंज भोंम देखे, ओर बाग बन्न देखे ॥ बंसिवट घन्न देखे, चित अतचाय के॥ कृश्नकी रमन्न भोम, देखी सब दोम दोम ॥ जमुनाके घाट जोम, देखे मन लायके ॥३॥
SR No.032687
Book TitleYaduvansh Prakash ane Jamnagarno Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMavdanji Bhimjibhai Rat
PublisherMavdanji Bhimjibhai Rat
Publication Year1934
Total Pages862
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy