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ओशवशे निहालस्य चौधरी कानुगस्य च, सुतप्रतापमल्लेन प्रतिमा स्थापिता शुभा ॥५॥
___ श्रीऋषभ जिनप्रासादात् लिखितम् गणिवर्य श्री महिमाप्रभसागरजी महो० ललितप्रभसागरजी व आर्याश्री जितयशाश्रीजी के दीक्षावसर पर बाड़मेर से नाकोडाजी जालोर आदि स्थलों में यात्रा हेतु जाने पर श्रीमान् उगमसीजी मोदी ने जालोर-स्वर्णगिरि तीर्थ का इतिहास लिखने का आग्रह किया। हम वहाँ कुल २ दिन ठहरे थे जो कुछ भी प्राचीन साहित्य में देखा-सुना पुस्तिका तैयार कर भिजवायी किन्तु वहाँ अर्थाभाव के कारण प्रकाशित न होने पर वापस मंगवा ली और अब प्राकृत भारती एवं बी० जे० नाहटा फाउण्डेशन की ओर से संयुक्त प्रकाशित की जा रही है।
गणिवर्य श्री मणिप्रभसागरजी ने जालोर के मन्दिरों के चित्र भिजवाये उन्हें साभार इस ग्रन्थ में दिये जा रहे हैं। काकाजी अगरचंदजी नाहटा के आदेश से अस्वस्थता के समय लिख कर तैयार किया जिसे आज १५ वर्ष हो गये अतः स्मृति दोष से रही अशुद्धियों के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ। इस ग्रन्थ के प्रकाशन में मेरे कनिष्ट पुत्र श्री पद्मचन्द नाहटा ज्येष्ठ पौत्र श्री सुशीलकुमार नाहटा का परिश्रम आशीर्वादाह है।
विनीत भंवरलाल नाहटा