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________________ प्राग्वाट धणदेव की वंश परम्परा श्री संघ के भंडार, पाटण की श्री शान्तिनाथ चरित्र की ताडपत्रीथ प्रति जो चौदहवीं शती की है, श्रीमाल वंशी श्राविका सलवणा प्रदत्त है इसमें ५-६ प्रशस्तियां है एक में जालोर का नाम जाल्योधर लिखा है। पाटण भंडार सूची (पृ० ३४४ ) में धर्म विधि वृत्ति की वस्त्र पर लिखी प्रति है जिसकी दाता की प्रशस्ति से विदित होता है कि सं० १४१८ के लिखे इस ग्रन्थ को श्री रत्नप्रभसूरि ने वांचा था। प्रशस्ति यह है : जावालि दुर्गे नगरे प्रधाने बभूव पूर्व धणदेव नामा। सहजल्हदेवि दयिता तदीया ब्रह्माक लिंबा तमयौ च तस्या ॥१॥ गौरदेवि दयिता प्रबभूव लिंबकस्य तनयः कडुसिंहः । तस्य च प्रियतमा कडुदेवी तस्य चैव समभूद् धरणाकः ॥२॥ ब्रह्माक पुतः प्रबभूव झंझणः प्राग्वाट वंशस्य शिरोमणिस्तु । आशाधरस्तस्य बभूव नंदन पुत्रश्च तस्य प्रबभूव गोगिलः ॥३॥ गोगिलस्य तनयः प्रबभूव पद्मदेव सुकृती सुकृतज्ञः। तस्य चैव दयिता सुर लक्ष्मी जैन धर्म करणेक कोविदा ॥४॥ अमी जयंति तनया यस्याश्च जगती तले। सुभसिंहः क्षेमसिंहः स्थिरपालस्तथैव च ॥५॥ जाया सुभसिंहस्य सोनिका हेम वणिका। तस्याः सुता जयन्त्युच्च रेते विदत विक्रमाः ॥६॥ तेजाको जयतश्चैव - ना(जा)वड़ पातलस्तथा। एताः पुत्र्यश्च यस्या हि कामी नामल चामिका ॥७॥ जाया स्थविरपालस्य भाविका देदिकाभिघा। तस्याः सुताः षडेते च जयंती जगती तले ॥॥ [ ५१
SR No.032676
Book TitleSwarnagiri Jalor
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherPrakrit Bharati Acadmy
Publication Year1995
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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