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वड़ गच्छ
राजस्थान शोध संस्थान, चौपासनी के ग्रन्थाङ्क ३०५ (७) में करम प्रभसूरि कृत बड़ गच्छ परम्परा स्तवन में श्री जयमंगल सूरि द्वारा जालोर में वर्द्धमान स्वामी के स्थापन करने का उल्लेख इस प्रकार है
वर्द्धमान जिजि थापिया ए, सिरि जालोर मंझारे । जुगप्रधान वंदु सहिय, श्रीजय मंगल सूरे ॥८॥
नागोरी का
पट्टावली प्रबन्ध संग्रह में आचार्य हस्तीमल्ल जी ने लुका शाह और पूज्य रूपचंद जी के सम्बन्ध में लिखा है
इधर किसी पौषधशालिकों ने भूमिघर में स्थित सिद्धान्त ग्रन्थों को गलता हुआ जान कर जालोर निवासी लुका नाम के लेखक को बुलाकर उसे एकान्त में रख कर पुस्तक लेखन करवाया । x x “ बाद लुका साह ने जालोर नगर से सभी आगम लिख कर रूपचंद जी के पास भेज दिए x x जालोर में कोचर वंशीय वेलावत, कालू निवासी भंडारी, जेसलमेर में बोहरावंशी, कृष्णगढ़ में वाघचार, चण्डालिया चौधर" --"अनेक जाति के और अग्रवाल भी नागोरी लुका गच्छी हो गए । हजार घर को उन्होंने प्रतिबोध दिया ।
ओकेश वंशीय ( ओसवाल ) इस तरह एक लाख अस्सी
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