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साधु पूर्णिमा गच्छ
जालोर में सभी गच्छों के आचार्यों का आवागमन और मान्यता थी। उन आचार्यों द्वारा प्रतिष्ठित प्रतिमा लेखों से यह चारु तया प्रमाणित है। बीकानेर के पार्श्वनाथ जिनालय ( कोचरों का चौक) की एक चन्द्रप्रभ चौबीसी प्रतिमा सं० १५०८ में स्वर्णगिरि पर प्रतिष्ठित है जिसका निर्माण जालोर के श्रीवत्स गोत्रीय ओसवाल वंश द्वारा हुआ था। प्रस्तुत अभिलेख यहाँ दिया जा रहा है
___ सं० १५०८ वर्षे ज्येष्ठ सुदि ५ रवौ अद्य ह स्वर्णगिरौ जाल्योद्धर वास्तव्यः श्री ऊकेश वंशे श्रीवत्स गोत्रीय प० देवा भा० देवलदे तत्पुत्र सं० बाबाख्य तद्भार्या विल्हणदे भ्रातृ देवसिंह पुत्र जागा भार्या कपूरीति कुटुब युतः श्री चन्द्रप्रभस्य बिब स चतुर्विंशति जिनमची करत श्री साधु पूर्णिमा पक्षे श्री रामचंद्रसूरि पट्टे परमगुरु भट्टारक श्री पुण्यचंद्रसूरीणामुपदेशेन विधिना श्राद्धः मंगलंभूयात् श्रमण संघस्य ।
[बीकानेर जैन लेख संग्रह नं० १६२५ ]
सुराणा गच्छ
संवत् १५५४ व० पौष ब० २ बुधे सुराणा गोत्रे सा० चीचा भा० कुती पु० मेघा भा० रंगी पु० सूर्यमल्ल स्वपुण्यार्थ श्री वासुपूज्य बिंब कारितं प्र० सूराणा गच्छे श्री पद्माणंदसूरि पट्टे श्रीनंदिवर्द्धनसूरिभिः जालुर वास्तव्यः ।
[बी जै० ले० सं० नं० ११२३ ] नागपुरो तपा ( पायचंद गच्छ )
६६ विवेकचन्द्रसूरि-जालोर के ओसवाल संघवी शा० मूलचंद पिता और महिमादे माता की कोख से सं० १८०९ में इनका जन्म हुआ। सं० १८२० नागौर में दीक्षा और आचार्य पद सं० १८३७ मिती आश्विन सुदि २ को वीरम गाँव में एवं भट्टारक पद माघ सुदी ५ को हुआ। सं० १८५४ श्रा० ब० १३ को उज्जैन में स्वर्गवासी हुए। उपकेश गच्छ
देवगुप्तसूरि के शिष्य वीरचंद जो आगम, छंद, मंत्र शक्ति आदि में बड़े प्रवीण थे। जावालिपुर में खंडेरक आचार्य के पास जा कर क्रिया होते देख सूरि जी से कहा—आज से २९वें दिन मेरे ( शव के ) पास आप लोग ऐसी क्रिया करोगे ! वचन सत्य हुआ और कथनानुसार वह वीरचंद जो आठ शास्त्रों का ( अष्टाङ्ग निमित्त) पण्डित और मात्र २८ वर्ष की अवस्था में था, स्वर्गस्थ हो गया और भविष्यवाणी सत्य हुई।
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