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________________ · . सं० १३९ बैशाख सुदी ३ मोढ वंशे श्रे० पाजान्वये व्य० देवा सुत व्य० मुंजाल भार्यया व्य० रत्नदिव्या आत्म श्रेयोर्थं श्री नेमिनाथ बिंबं कारितं श्री जाल्योद्धर गच्छे श्री सर्वाणंदसूरि सताने श्री देवसूरि पट्टभूषणमणि प्रभु श्री हरिभद्रसूरि शिष्यैः सुविहित नामधेय भट्टारक श्री चन्द्रसिंहसूरि पट्टालंकरण श्री विबुधप्रभसूरीणां श्री पाजावसहिकायां भद्रं भवतु । [ प्राचीन लेख सं ० ले० ६७ ] ४. सं० १४२३ वर्षे फा० सु० ९ मोढ ज्ञातीय श्रे० गणा भा० व० लाडो सुतसामलेन मा० पितृ० श्रे० श्री शांतिनाथ बि० का० प्र० जाल्योधर ग० प्र० श्री ललितप्रमसूरिभिः [ प्रा० ले० सं० ले० ७६ ] ५. सं० १५०३ वर्षे माघ सुदि १४ सोमे कुमारदेव्या सुपुण्याय श्री पार्श्वनाथ बिबं कारितं श्री जाल्लोधर गच्छे भद्ररत्नसूरि माणिक्यसूरिभिः शिष्यैः प्रतिष्ठितं [ जैन धातु प्रतिमा ले० ९९ ] ६. श्री जालोहरीय गच्छे श्री वच्छ सुत निमितं शांतन णेनकारिता । [ प्रतिष्ठा लेख संग्रह ले० २३ ] ७. ९ ।। सं० १३३१ वर्षे बैशाख सुदि १५ बुधे जाल्योधर गच्छे मोढ वंशे श्रे० यशोपाल सुत ठ० पूनाकेन मातृ माल्हाण श्रेयोर्थ विमलनाथ बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्री हरिप्रभसूरिभिः [ प्राचीन जैन लेख संग्रह नं० ४९८ ] इन लेखों में चार लेखों में प्रतिमा निर्मापक मोढ ज्ञाति के थे, दो में निर्देश नहीं है । किन्तु देवसूरि संतानीय उल्लेख होने से संभवतः वृहद् गच्छीय वादीन्द्र देवसूरि की पट्ट परम्परा ही आगे चल कर जालोरी गच्छ नाम से प्रसिद्ध हो गई मालुम देती है । तोपखाने में स्थित कुमरविहार के अभि लेख में इन्हीं देवसूरि संतानीय आचार्यों को मन्दिर की व्यवस्था से सम्बन्धित नियुक्त किया गया था, स्पष्ट उल्लेख है, पट्ट परम्परादि अन्वेषणीय है इनकी नियुक्ति महाराज समरसिंह के आदेश से हुई थी । नाणकीय गच्छ सं० १३२० और सं० १३२३ के अभिलेखों से विदित होता है कि चंदन विहार नामक महावीर जिनालय इस गच्छ से सम्बन्धित था और वह महाराज चंदन के समय का निर्मित होगा । आचार्य धनेश्वरसूरि के विद्यमानता में तेलहरा गोत्रीय श्रावक इस गच्छ के अनुयायी थे । ४८ ]
SR No.032676
Book TitleSwarnagiri Jalor
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherPrakrit Bharati Acadmy
Publication Year1995
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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