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________________ नरपालश्च हापाक स्त्रिभुवनस्तु कालुकः । केल्हाक: पेथई श्चैव षडेते सुर सुन्दराः ॥९॥ स्थविरपालस्य साहाज्जा (ग्या) त् श्री रत्नप्रभसूरिभिः । विशालाया धर्मविधेः पुस्तकं वाचितं वरम् ॥१०॥छः॥ धणदेव ( सहजलदे ) लिबा ( गौरदेवी) कडुसिंह ( कडुदेवी ) ब्रह्मा झंझण आशाधर धरणाक गोगिल पद्मदेव (सुरलक्ष्मी ) । सुभटसिंह क्षेमसिंह स्थिरपाल ( देदिका) (सोनिका) पुत्र-तेजा जयत जावड़ पातल पुत्री १ कामी २ नामल ३ चामिका नरपाल हापा त्रिभुवन कालु केल्हा पेथड़ इस प्रशस्ति से प्राग्वाट वंशी स्थिरपाल का वंशवृक्ष इस प्रकार बनता है, ये जावालिपुर वासी थे। ५२ ]
SR No.032676
Book TitleSwarnagiri Jalor
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherPrakrit Bharati Acadmy
Publication Year1995
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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