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________________ "गुरु जालउरि पधारिया, तिहां किणि रहया चउमासि । श्रीजी नइ वचनइ करी, पूरइ भवियणरे २ मन केरी आसिकि ॥६॥" कविवर समयसुन्दर कृत अष्टक में"एजी गुजरतें गुरूराज चले, विच में,चौमास जालोर रहे" श्रीजिनचन्द्रसूरि अकबर प्रतिबोध रास मेंसोबनगिरि श्री संघ आवउ, उच्छव कर गुरू वंदिया गुरू संघ श्री जावालपुर नह, वेगि पहुंता पारणइ। अति उच्छव कीयउ साह वन्नइ, सुजस लोधउ तिणि खणइ ॥६६॥ कवि कुशललाभ कृत संघपति सोमजी के संघ यात्रा स्तवन में जालोर के संघके सम्मिलित होने का उल्लेख है। यह स्तवन गा० ७५ का अपूर्ण है जिसका सार जैन सत्यप्रकाश वर्ष १८ अंक ३ में प्रकाशित है । साधुकोत्ति उपाध्याय सुप्रसिद्ध विद्वान उपाध्याय साधुकीत्ति जी ने जालोर में विचरण किया था। सं० १६४६ में आप का यहीं पर स्वर्गवास हुआ था। श्री जयनिधान कृत साधुकीत्ति गुरु स्वर्गगमन गीत में : गाम नगर पुरि विहरी महीयलई, पड़िबोही जन वृन्दोजी। सोल छयालइ आया संवतह, पुरि जालोर मुणिदोजी ॥५॥ माह बहुल पखि अणसण उच्चरि, आणी नियमन ठामोजी। "॥६॥ आउ पूरी चउदसि दिम भलइ, पहुता तब सुरलोक जी। Qभ अपूर्व कियउ गुरु तणउ प्रणमीजइ बहुलोक जो ॥७॥ श्रो जिनसागरसूरि श्री धर्मकीत्तिकृत जिनसागरसूरि रास में :जालउरइ आवइ गच्छराज, बाजिन वाजइ बहुत दिवाज । श्री संघ सुवंदाइ कामिनी, रूपइ जीती सुर भामिनी ॥६३॥ ....................... साधु विहारइ पग भरइए, सोवनगिरइ अहिठाण।। श्री संघ उच्छव नितकरइए, अवसरनउ जे जाण ॥१६॥ ३८ ]
SR No.032676
Book TitleSwarnagiri Jalor
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherPrakrit Bharati Acadmy
Publication Year1995
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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