SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 64
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कवि सुमतिवल्लभ कृत जिनसागरसूरि रास में : बीलाड़ा मई संघवी कटारियाजी, जइतारण जालोर । पचियाख पालणपुर भुज सूरतमइजी, दिल्ली नइ लाहोर ॥६॥ कविवर समयसुन्दरोपाध्याय कृत जिनसागरसूरि अष्टक में --- " श्री जावालपुरे च योधनगरे श्री मल्लाभपुरे च वीरमपुरे, श्री नागपुर्य्यां पुनः श्री सत्यपुर्यामपि ॥" श्री जिनरत्नसूरि श्री जिनराजसूरि के पट्टधर थे । श्री जिनरत्नसूरि निर्वाण रास में इनके जालोर पधारने पर सेठ पीथा द्वारा प्रवेशोत्सव कराये जाने का उल्लेख इस प्रकार है —— सोवनगिरि श्रीसंघ आग्रहि, आविया गणधार रे । पइसारउछब सबल कीधउ सी (से) ठ पीथइ सार रे ॥३॥ संघ नइ वंदावि सुपरह, पूज्यजी पटधार रे । विचरता मरुधर देश मांहे, साधु नइ परिवार रे ॥४॥ ज्ञानमूर्ति - सं० १६८८ में खरतर गच्छीय श्री ज्ञानमूति मुनि जालोर में विचरे थे और मिती फाल्गुन शुक्ल १४ को जिनराजसूरि कृत शालिभद्र चौपाई की प्रति लिखी जो पत्र २४ की प्रति सूरत के वकील डाह्याभाई के संग्रह में है । युग प्रधानाचार्य गुर्वावली के व्यवस्थित वर्णन में हम देख चुके हैं कि जालोर के मन्त्री, श्रेष्ठि आदि सैकड़ों वैराग्य रंजित धर्मात्माओं ने भागवती दीक्षा स्वीकार की है और यहाँ के संघ ने तदुपलक्ष में महोत्सव आयोजित कर अपनी चपला लक्ष्मी का उन्मुक्त सदुपयोग किया है । उसके पश्चात् इतिहास अप्राप्त है पर इतना तो सहज ही माना जा सकता है कि यह परम्परा अवश्य ही चालू रही है । जयपुर वाले श्री पूज्यों के दफ्तर में जालोर में जो साधु-यतिजन की दीक्षाओं का उल्लेख है उसे यहाँ उद्धृत किया जाता है श्री जिनसुखसूरिजी ने सं० १७७० माघ बदि १२ को जालोर में पं० कर्मचन्द्र को दीक्षा देकर पं० कीर्तिजय नाम से पं० दयासार के प्रसिद्ध किया था । शिष्य रुप में [ ३९
SR No.032676
Book TitleSwarnagiri Jalor
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherPrakrit Bharati Acadmy
Publication Year1995
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy