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________________ सुन्दरोपाध्याय कृत अष्टलक्षी प्रशस्ति के अनुसार उन्होंने जावालिपुर-जालोर में भी ज्ञान भण्डार स्थापित किया था । यतः - श्री मज्जेसलमेरु दुर्गं नगरे जावालपुर्या तथा श्री मद्देवगिरौ तथा अहिपुरे श्री पत्तने पत्तने भाण्डागार मबी भरद् वरतरं नानाविधः पुस्तकैः स श्री मज्जिनभद्रसूरि सुगुरु र्भाग्याद्भ ुतोऽभूद्भुवि ॥२१॥ युगप्रधान श्री जिनचन्द्रसूरि विहार पत्र के अनुसार श्री जिनचन्द्रसूरिजी ने सं० १६४१ में जालोर में चातुर्मास किया था और प्रतिपक्षियों से शास्त्रार्थ में विजय प्राप्त की थी । इसी वर्ष श्री जिनचन्द्रसूरिजी के सान्निध्य में जालोर से आबू तीर्थ की यात्रा के हेतु संघ निकला था । जिसके वर्णन स्वरूप 'अर्बुदतीर्थ चैत्य परिपाटी' ( गा - २१ ) में कवि लब्धिकल्लोल ने लिखा है कि भगवान पार्श्वनाथ को वन्दन कर जालोर का संघ युगप्रधान श्री जिनचन्द्रसूरिजी के साथ आबू यात्रा के लिए चला जिसका संक्षिप्त वर्णन करते हुए कवि लिखता है कि- सर्वप्रथम ऋषभदेव, शान्तिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ और महावीर भगवान ने पांचों जिनालयों को वन्दन कर दादा साहब श्री जिनकुशलसूरिजी के चरण कमलों में नमस्कार कर संघ ने प्रयाण किया । पहले सुविधिनाथ जिन फिर उडू गाँव में, गोहली में, सीरोही में आदिनाथादि ७ जिनालय, संघणोद, हम्मीरपुर, सीरोढी, पालडी हणाद्रपुर, के जिनालयों को वन्दन कर क्रमशः देवलवाड़ा पहुँचे । वहाँ विमलवसही, लूणिगवसई भी मावसही, मंडलीक ( खरतर ) वसही और हुम्बड़ वसही की यात्रा करके अचलगढ गए. । वरराध विहार में शान्तिनाथ भगवान और युगप्रवर श्री कीतिरत्नसूरिजी ( की प्रतिमा ) को वन्दन किया । सहसा के चौमुख प्रासाद में आदिनाथ, तीसरे मन्दिर में कुन्थुनाथ प्रभु को वन्दन किया । ओरीसइ में महावीर भगवान की लौटते हुए फिर हणाद्रा, वेलांगिरि, कालन्द्री होकर कुशलक्षेम पूर्वक सोवनगिरि-जालोर पहुंचे । ( युगप्रधान जिनचन्द्रसूरिजी गुजराती पृ० यात्रा कर अपने घर ३०५ ) सम्राट अकबर के आमन्त्रण से खंभात से लाहौर जाते हुए सं० १६४८ का चातुर्मास अकबर के वचनानुसार जालोर में बिताया जिसका वर्णन श्री सुमति कल्लोल कृत गीत में इस प्रकार है [ ३७
SR No.032676
Book TitleSwarnagiri Jalor
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherPrakrit Bharati Acadmy
Publication Year1995
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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