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________________ सं० १२९४ के लेख में श्रीमालीय विजा और देवड़ द्वारा अपने पिता के श्रेयार्थ महावीर जिनालय में करोदि ? कराने का उल्लेख है । सं० १३२० और १३२३ के अभिलेखों से मालूम होता है कि चंदनविहार नाणकीय गच्छ सम्बन्धित था, प्रथम लेख में इस महावीर जिनालय में आसोज अष्टाह्निका के लिए द्रव्यदान करने का और दूसरे में महाराजा चाचिगदेव और महामात्य यक्षदेव के समय में तेलहरा गोत्रीय महं० नरपति ने धनेश्वरसूरि को द्रव्य ५० द्रम्म मासिक पूजा के लिए दिये ताकि इस द्रव्य के ब्याज से व्यवस्था की जाय । सं० १३५३ का अभिलेख महाराउल सामंतसिंह और कान्हड़देव के समय का है जिसमें सोनी गोत्रीय श्रावक परिवार द्वारा स्वर्णगिरि के पार्श्वनाथ जिनालय को एक हाट प्रदान करने का उल्लेख है जिसके भाड़े की आय से पंचमी के दिन प्रतिवर्ष विशेष पूजा कराई जाने का निर्देश है | स्वर्णगिरि पहाड़ पर और भी जिनालय थे जिनका उल्लेख स्तोत्रों एवं युगप्रधानाचार्य गुर्वावली आदि में पाया जाता है । एक संस्कृत स्तोत्र ( जैन स्तोत्र संदोह भाग - २ पृ- १८० ) में कुम्कुमरोल नामक पार्श्वनाथ जिनालय का उल्लास है । कवि नगर्षि ने जालोर के पंच जिनालय चैत्य परिपाटी स्तवन में कु कुमरोल पार्श्वनाथ जिनालय पाँचवाँ लिखते हैं जिसमें सप्तफणवाली प्रतिमा थी, वे स्वर्णगिरि के किसी मन्दिर का उल्लेख नहीं करते । जालोर शहर के बाहर संडेलाव नामक विशाल तालाब है जिसके किनारे चामुण्डा माता का मन्दिर है, इसके पार्श्ववर्त्ती एक कुटी में एक मूर्ति है जिसे लोग चौसठ जोगणी की मूर्ति कहते हैं । वस्तुतः यह मूर्ति कायोत्सर्ग स्थित जिन प्रतिमा ही है जिसके अंग प्रत्यंग घिसकर जोगणी जैसा बना दिया है जो बड़े दुख की बात है । इस पर उत्कीर्णित अभिलेख सं १९७५ का है जिसमें जावालिपुर के चैत्य में सामंतसिंह श्रावक के परिवार द्वारा जावालिपुर के चैत्य में श्री सुविधिनाथ देव के खत्तक पर द्वार कराने का उल्लेख है । अब युगप्रधानाचार्य गुर्वावली के आधार से संक्षेप में बताया जा रहा है कि सं० १२६९ से १३४६ तक कितनी प्रतिष्ठाएं और ध्वज-दण्ड बिम्ब स्थापनादि हुए और वे सब इतिहास के पन्नों में नाम शेष हो गए । यवन अत्याचारों और विनाशलीला की दुखद कहानी का ही यह एक अध्याय है । जावालिपुर में विधि चैत्यालय का निर्माण होकर उसमें कुलधर मंत्री निर्मापित महावीर स्वामी का विधि चैत्य जिसका नाम 'महावीर बोली' में 'उदय १० ]
SR No.032676
Book TitleSwarnagiri Jalor
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherPrakrit Bharati Acadmy
Publication Year1995
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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