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________________ बिहार' लिखा है - की स्थापना सं० १२६९ में श्री जिनपतिसूरिजी ने समारोहपूर्वक की थी, इसी परिवार ने इस महावीर जिनालय में पार्श्वनाथ देवकुलिका और सेठ लालन ने वासुपूज्य देवगृहिका निर्माणकराई सं० १२७८ में जावालिपुर में नये देवगृह का प्रारंभ हुआ। सं० १२८१ में इसी महावीर जिनालय में ध्वजारोहण सं० १२८८ में स्तूप ध्वज प्रतिष्ठा, सं० १२९८ में स्वर्णदण्ड ध्वजारोहण हुआ। सं० १३१० में इसी महावीर विधिचैत्य में चतुर्विंशति जिनालय सप्तति शतजिन, समेतशिखर, नन्दीश्वरद्वीप, मातृपट, महावीर स्वामी (उज्जैन के लिए ), चन्द्रप्रभ, शान्तिनाथ, सुधर्मा स्वामी, जिनदत्तसूरि, सीमंधर स्वामी, युगमंधरादि नाना प्रतिमाएं प्रतिष्ठित हुई। सं० १३१७ में २४ देहरियोंपर स्वर्ण कलश-ध्वज दण्ड चढाये। सं० १३२५ वैशाख सुदि १४ को इसी मन्दिर में २४ जिनबिंब, सीमंधर युगमंधर, बाहु सुबाहु जिन बिम्बों की प्रतिष्ठा हुई। सं० १३२८ वै० सु० १४ को क्षेमसिंह कारित चन्द्रप्रभ महाबिंब, महं० पूर्णसिंह कारित ऋषभदेव महावीर स्वामी प्रतिमाओं का प्रतिष्ठा महोत्सव हुआ। सं० १३३१ में सा० क्षेमसिंह ने श्री जिनेश्वरसूरि स्तूप का निर्माण कराया । सं० १३३२ ज्येष्ठ वदि को क्षेमसिंह कारित प्रतिष्ठा महोत्सव हुआ जिसमें नमिविनमि सेवित आदीश्वर, धनदयक्ष व स्वर्णगिरि पर चन्द्रप्रभ स्वामी व वैजयन्ती की प्रतिष्ठा कराई, दिल्ली आदि के श्रावकों ने भी अनेक प्रतिमाएं प्रतिष्ठित करवाई। ज्येष्ठ बदि ६ को चन्द्रप्रभ स्वामी के ध्वजारोहण जेठ बदि ९ को जिनेश्वरसूरि स्तूप में प्रतिमा की प्रतिष्ठा हुई। सं० १३४२ ज्येष्ठ बदि ९ को क्षेमसिंह कारित २७ अंगुल की रत्नमय अजितनाथ प्रतिमा, ऋषभदेव, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ प्रतिभा तथा देदा मंत्री कारित युगादिदेव, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ बिम्बों की एवं छाहड़ कारित शान्तिनाथ स्वामी के महत्तम बिम्ब की, वैद्यदेहड़ कारित अष्टापद ध्वज-दण्ड की प्रतिष्ठा हुई। सं० १३४६ माघ बदि १ को सा. क्षेमसिंह भा० बाहड़ कारित चन्द्रप्रभ जिनालय के पास आदिनाथ नेमिनाथ बिम्बों को मण्डप के खत्तक में समेतशिखर के २० बिम्बों का स्थापना महोत्सव हुआ। वैशाख सुदि ७ को जिनप्रबोधसूरि मूत्ति को स्तूप में स्थापित की, ध्वजादंड भी साह अभयचन्द ने चढाए । इससे जावालिपुर में महाबीर स्वामी के विधि चैत्य की विशालता और अन्य मन्दिर भी स्थापित हुए जिनका आभास मिलता है। स्वर्णगिरि पर भी सं० १३१३ में वाहित्रिक उद्धरण प्रतिष्ठापित शान्तिनाथ प्रतिमा को महाप्रासाद में स्थापित की। वै० व० १ को पदू, मूलिग द्वारा द्वितीय देवगृह में अजितनाथ स्वामी की प्रतिष्ठा हुई। सं० १३१४ में स्वर्णगिरि के [ ११
SR No.032676
Book TitleSwarnagiri Jalor
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherPrakrit Bharati Acadmy
Publication Year1995
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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