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________________ बनाया हो तो उससे पहले वहां मन्दिर विद्यमान था जिसका संकेत कुवलयमाला की गाथा में है। तोपखाने में सं० १२३९, १२६८, १२९४, १३२० और सं० १३२३ के अलग-अलग वर्षों में लिखे हुए शिलालेख आज भी विद्यमान हैं इन सभी शिलालेखों को आगे प्रकाशित किया गया है यहां उनका परिचय उल्लेख किया जा रहा है। महाराजा समरसिंह के समय में हुए श्रीमाल वंश के सेठ यशोदेव के पुत्र श्रेष्ठि यशोवीर ने जालोर के आदिनाथ मन्दिर का रमणीय मण्डप सं० १२३९ के बैशाख सुदि ५ गुरुवार को कराया था। यह मण्डप शिल्पकला का अद्भुत नमूना था जिसे देखने के लिए देश-विदेश के सैकड़ों प्रेक्षक आते थे। सभा मण्डप के पाट पर उत्कीणित लेख में एतद्विषयक उल्लेख इस प्रकार है "नाना देश समागत नवनवैः स्त्री पुंस वर्ग मुंहुयंस्या हो ! रचनावलोकन परैः नो तृप्ति रासाद्यते। स्मारं स्मार मयो यदीय रचना वैचित्य स्फजितम् तैः स्वस्थान गतैरपि प्रतिदिनं सोकत्कण्ठ मावर्ण्यते ॥" सं० १२६८ का लेख कुमरविहार का है, इस लेख से विदित होता है कि सं० १२२१ में महाराजा कुमारपाल ने गढ पर श्री पार्श्वनाथ भगवान का मन्दिर निर्माण कराया था और सद् विधि प्रवर्तनार्थ वादि देवसूरि के पक्ष को समर्पित कर दिया। सं० १२४२ में चौहान नरेश्वर समरसिंह के आदेश से भां० पासु के पुत्र भां• यशोवीर ने उद्धार कराया। सं० १२५६ ज्येष्ठ सुदि ११ को श्रीदेवाचार्य के शिष्य पूर्णदेवाचार्य ने राजकुल की आज्ञा से पार्श्व जिनालय के तोरणादि की प्रतिष्ठा व मूल शिखर पर स्वर्णमय ध्वजादण्ड प्रतिष्ठा और ध्वजारोपण किया। सं० १२६८ में नव निर्मित प्रेक्षा-मण्डप में श्री पूर्णदेवाचार्य के शिष्य रामचन्द्राचार्य ने स्वर्णमय कलशों को प्रतिष्ठित कर चढाये । इस लेख में निर्दिष्ट श्री रामचन्द्रसूरि ने संस्कृत में ७ द्वात्रिंशिकाएं रची हैं। इस मन्दिर की भव्यता विशालता और महत्ता स्पष्ट है। यह बावन जिनालय था जिसमें पार्श्वनाथ भगवान की फणयुक्त प्रतिमा विराजमान थी। सं० १२९६ के एक अभिलेख से ज्ञात होता है कि नागपुरीय लाहड़ ने इस मन्दिर की भमती में एक देहरी कराके श्री आदिनाथ भगवान की प्रतिमा प्रतिष्ठा कराई थी। इसी लेख में उसी के वंशज देवचन्द्र श्रेष्ठी के अष्टापद मन्दिर में दो गवाक्ष बनवाने का उल्लेख है।
SR No.032676
Book TitleSwarnagiri Jalor
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherPrakrit Bharati Acadmy
Publication Year1995
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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