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________________ ज्ञात होता है कि जाबालिपुर के सुवर्णगिरि पर पार्श्वनाथ चैत्य की भमती में अष्टापद की देहरी में खत्तक द्वय कराये थे । जालोर नगर के मध्य भाग में 'जुना तोपखाना' नाम से प्रसिद्ध इमारत है जिसमें प्रवेश करते ही बावन जिनालय वाले विशाल मन्दिर का आभास होता है । उसके श्वेत पाषाण की देहरियां, कोरणीवाले पत्थर और शिलालेख युक्त स्तम्भ, मेहराब, देहरियाँ और दीवालों से प्राप्त शिलालेखों से स्पष्ट होता है कि यह इमारत जैन मन्दिरों के पत्थरों से बनी हुई है । डॉ० भाण्डारकर का मन्तव्य है कि - "यह इमारत कम से कम चार देवालयों की सामग्री से बनायी गई है जिसमें एक तो 'सिन्धुराजेश्वर' नामक हिन्दू मन्दिर और अन्य तीन आदिनाथ, पार्श्वनाथ और महावीर स्वामी के जैन मन्दिर थे, इनमें से पार्श्वनाथ जिनालय तो किल्ले पर था ।" । गच्छ से सम्बन्धित यह पार्श्वनाथ जिनालय निश्चित ही स्वर्णगिरि पर महाराजा कुमारपाल द्वारा निर्मापित 'कुमर बिहार' नामक प्रसिद्ध चैत्य था श्री महावीर स्वामी का मन्दिर 'चन्दन विहार' नाम से प्रसिद्ध था जो नाणकीय था । महेन्द्रप्रभसूरि ने 'यक्षवसति' नामक महावीर जिनालय को नाहड़ नृप के समय का बतलाया है । हमें मन्दिरों के नामों पर विचार करते महाराज 'चन्दन' नामक परमार वाक्पतिराज के उत्तराधिकारी निश्चयरूप से था एवं 'यक्ष वसति' नाम देने के कारण पर विचार करने पर सहसा 'यक्षदत्तगणि' का नाम स्मरण होता है । उद्योतनाचार्य ने लिखा है कि "उनकी पूर्व परम्परा में पांच पीढ़ी पहले शिवचन्द्रगणि जिनवन्दनार्थ भ्रमण करते हुए श्री भिन्नमाल नगर में ठहरे थे । उनके गुणवान क्षमाश्रमण महान् शिष्य यक्षदत्तगणि महान महात्मा तीन लोक में प्रगट यश वाले हुए" नाहड़, यक्षदत्त और चन्दन के समय में काफी अन्तर है अतः महावीर जिनालय अभिन्न मानने में बाधा है ये दोनों अलग-अलग जिनालय थे नामकरण सकारण हुआ हों तो पता नहीं, विद्वानों को इस पर प्रकाश डालना चाहिए । यक्षदत्तगण ने गुजरात और राजस्थान में अनेक स्थानों को जिन मन्दिरों से सुशोभित किया था। जिनके नाम की स्मृति में यक्षवसति नाम दिया जाना संभवित है । ऋषभदेव जिनालय को उद्योतनाचार्य ने वीरभद्र कारित बतलाया है यदि वह स्वर्णगिरि स्थित मानें तो इसी मन्दिर के आगे श्रीमाल श्रावक यशोदेव के पुत्र यशोवीर ने मण्डप बनवाया था । उसके द्वारा जिनालय निर्माण नहीं कलापूर्ण दर्शनीय मण्डप सं० १२३९ में निर्माण कराने का ही शिलालेख में उल्लेख है । यदि जावालिपुर नगर के आदिनाथ मन्दिर के आगे उक्त मण्डप = ]
SR No.032676
Book TitleSwarnagiri Jalor
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherPrakrit Bharati Acadmy
Publication Year1995
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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