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________________ श्री मतिकुशल कृतम् जालोर मण्डण षट् जिणहर स्तवनम् दूहा-सोरठा सकल सदा सुखदाय, सानिधकारी सेवकां । जालोरै जिनराय, षट् जिनहर नमु खंतिस्यु॥१॥ पारसनाथ सांति ऋषभ प्रसिद्ध, दें सिद्ध, महावीर नेमीसरु । परता पूरै पासजी ॥२॥ राग-सोरठ ढाल-धनरी सोरठी आज दिवस ऊगो भलौ हे सहीयां, पेख्या पारसनाथ । मन गमती आवी मिल्यौ हो जी, सूधौ शिवपुर साथ ।।३।। प्रणमौ पासजी, बहिनी वंदी हे भावसु भगवान । आंकणी ॥ आरति दुख दूरे गया हे सहीयां, प्रगटयो पुण्य पडूर । भव भय भागौ भेटीयां हो जी, हरख्यो आय हजूर ॥४॥प्र०॥ ढाल-मनहर लाही लोज हो साहिबा जिनवर नाम सुणीने हो हरखीयो, वीरां में महावीर जि. अरीय उथेड्या हो आपणा, हिव करि माहरी भीर जि० ॥५॥ महिर करीजै हो मोपरा, माहरी तो परि मांड जि० । मात पिया नै हो मूकि नै, छोरू जाइ किहां छांड जि० ॥६॥ तै अपराधी हो तारीया, हिव करि माहरी सार जि.। पर उपगारी हो तु सही, तारिक विरूद चीतारि जि० ॥७॥ [ ८७
SR No.032676
Book TitleSwarnagiri Jalor
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherPrakrit Bharati Acadmy
Publication Year1995
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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