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________________ ढाल—अलबेलौ हाली हल खड हो नेम जिणेसर निरखीयौ हो, हरखीयौ माहरौ चीत । मुगति महेली मेलिवा मोन मिलियौ हो मन मेलू आवी मीत ॥८॥ सहू आस फली मन माहिली हो, मोनै मिलियो हो अंतरजामी आइ ।सहू. विण कहीयां मन वातड़ी हो, जाण उपजे जेह । भाग्य उदै मैं भेटीयो, सहुवंछित पूरण' सामी एह ॥९।।सहू०॥ ढाल-मुखनै मोती ल्याज्यो राज मुखनै मोती ल्याज्यो कांइ माहरी मुदित करेज्यो राज, माहरी मुदित करेज्यो। निज तन दान देइ नै राख्यौ, पूरब भव पारेवी। एह विरुद सांभलि हूं आयौ, हिवमुझ सुजस गहेवौ राज ॥१०॥मा०॥ सरण राखौ संति जिणेसर, एहिज अरज अम्हारी। परम सनेही अंतर परि हरि, वलिजाऊबार हजारी राज ॥११॥मा०॥ ढाल-झिरमिर वरस मेह झरोखै कोइली हो लाल झ० पांचमै भवणे प्रथम जिणेसर पेखीयौ हो लाल जि० । मानव जनम प्रमाण मैं आज ए लेखीयौ हो लाल मैं । मरुदेवी सुत महियल महिमा सागर हो लाल के म० । सुध समकित रौ आज आखां तुझ आगरू हो लाल आ० ॥१२॥ पय जुग प्रवहण रूप भवोदधि तारिवा हो लाल भ० । मुझ नै मिलियौ आइ, सयल दुख वारिवा हो लाल स० । आज सर्या सहु काज, निवाज्यौ करि दया हो लाल नि । मन सुध श्री महाराज करी मोपरि मया हो लाल क० ॥१३॥ ढाल-पंथीड़ानो आस्या पूरण मिलीयो पासजी रे, दाइक देवा अविचल राज रे। कंचन नी परि कसवटीय कस्योजी, कोड़ि समारै वंछित काज रे ॥१४॥ आज मनोरथ फलीया माहरा रे, पायौ पूरब भवनौ साम रे । सेवा सफली थासी एहनी रे, महीयल वधसी माहरी मांम रे ॥१॥आज०॥ ८८ ]
SR No.032676
Book TitleSwarnagiri Jalor
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherPrakrit Bharati Acadmy
Publication Year1995
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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