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________________ ॥ढाल॥ पंचम जिणहरि जायस्यु रे, जिहां के पास जिणंद, कुकुमरोल नमु सदा रे, जिमघरि कुकुमरोल, जिणेसर तू महिमावंत"॥३१॥ सोवन सम तुझ मूरती रे, सपत३८ फणामणि सोभ, जे तुझ नाम जपइ सदा रे, ते पामइ नवि खोभ३९ "जिणे० ॥३२॥ सायणी४० डायणी४१ जोयणी४२ रे, भूत प्रेत न छलंति४३, रोग सोग सहु उपसमइ रे, जे तुझ पूज४४ करंति जिणे ॥३३॥ धरणराय पदमावती रे, अहोनिशि सारे सेव, ठामि ठामि तूं दीपतु रे, तुझ समवड़ि नहि देव जिणे ॥३४॥ तुझ गुण पार न पामीइ रे, तू छइ गुण भंडार, जे तुम सेव करइं सदा रे, ते पामइं सुखसार जिणे० ॥३५॥ ॥ढाल॥ चिइपरिवाड़ी जे करइं माल्हंतड़े, प्रहऊगमतइ सूर४५, सुणिसुदर प्रहऊ०, बोधि बीज पामइं घणु ए मालंतड़े तस घरि जय संपति पूर" सुणि० ॥३६॥ तस घरि उछव नवनवाए मालंतड़े तस घरि जय जयकार, तस घरि चिंतामणि फल्यु मालंतड़े ते जाणु सुविचार सुणि० ॥३७॥ ससि रस वाण ससी (१६५१) सुणुए मालंतड़े, ते संवच्छर जाणि, भादव वदि तइया ६ भलीए मालतड़े, सुरगुरुवार वखाणि सुणि० ॥३८॥ ॥ कलश ॥ नयर श्री जालुर माहै, चइत परिपाटी करी, ए तवन भणतां अनइं सुणतां, विधन सव जाइं टरी४७, तपगच्छ नायक सुमतिदायक, श्री हीरविजय सूरीसरो, कवि कुशलवरधन सीस पभणइ, 'नगा' गणि वंछिय करो॥३९॥ ॥ इति श्री जालुर नगर पंच जिनालय चइत्य परिपाटी॥ (७१) ३८. सात ३९. क्षोभ ४०. शाकिनी ४१. डाकिनी ४२. योगिनी ४३. छल-कपट करे ४४. पूजा ४५. सूर्य ४६. तृतीया ४७. टलजाय
SR No.032676
Book TitleSwarnagiri Jalor
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherPrakrit Bharati Acadmy
Publication Year1995
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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