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(१) साधु, साध्वी अपने दैनिक कार्यके लिये साधु, साध्वीके अतिरिक्त किसी भी श्रावक या अन्य जनकी सहायता नहीं लेते। तेरापन्थी साधु पैदल तथा नग्न पैर चलते हैं, कोई यान वाहनका उपयोग नहीं करते । अपना बोझ भार भी स्वयं हो ले जाते हैं। स्वयं पैसा देकर या दूसरोंसे दिलाकर रेल, मोटर आदि यानवाहनका सहारा लेना परिग्रहत्याग व्रत एवं अहिंसा व्रतका भङ्ग करना है । ईयर्या समितिका बाधक है । इस तरह नाना प्रकारके दोष इस यानवाहनको उपयोगमें लानेसे होते हैं। तीर्थङ्कर देवने ऐसा करनेकी आज्ञा नहीं दी है।
(२) तेरापन्थी साधु साध्वी किसी भी गृहस्थसे पत्र व्यवहार नहीं करते । डाक, तार, दूत या आदमी मारफत कोई पत्र किसीको नहीं भेजते । डाक, तार, हवाई जहाज अथवा अन्य साधनों द्वारा पत्रादि देना, व्यय एवं हिंसा जनक है।
(३) तेरापन्थी साधु किसी एक जगह साधारणतया एक माससे अधिक नहीं रहते और वर्षा ऋतुमें ( चातुर्मासमें ) चार मास (श्रावणसे कार्तिक पूर्णिमा) तक एक जगह ठहरते हैं। जहां एक मास रहना होता है वहां फिर 'दो मासके बाद ही आ सकते हैं, पहिले नहीं । जहां एक चातुर्मास रह चुके हैं वहां दो चातुर्मासके अनन्तर ही चातुर्मासमें रह सकते हैं । किन्तु प्रामानुग्राम बिचरते हुए ऐसे क्षेत्रोंमें एक रात रहनेकी शास्त्रोंकी आज्ञा है और वैसा ही तेरापन्थी साधु करते हैं।
(४) तेरापन्थी साधु अपने पुस्तकादि उपकरण जहां जाते हैं वहां स्वयं साथ ले जाते हैं। दूसरे गृहस्थके सुपुर्द नहीं छोड़ते। शास्त्रानुसार प्रत्येक जैन साधु को अपने उपकरण, वस्त्र, पात्र, कंबल पुस्तकादिकी प्रतिदिन देखभाल करनी चाहिये जिससे यह मालुम हो जाय कि उन उपकरणों से कोई जीवजन्तुकी विराधना न हुई हो । यदि साधु साध्वी किसी भण्डार या गोदाममें पुस्तकादि रखते रहें तो दैनिक पडिलेहना (निरीक्षण ) नहीं हो सकती एवं यह शिथिलता शास्त्र-मर्यादाका उल्लंघन करना है।