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________________ ( ३६ ) और कर्मों से छुटकारा पानेके लिये ही उनके उपवास हैं। जीवात्माका कों के साथ जो संयोग रहा हुआ है उस संयोगमें से आत्म-तत्वको उसके असली रूपमें अलग करनेका काम तपस्या ही करती है । जैनी लोग सांसारिक, सामाजिक या राजनैतिक उद्देश्यको सफल करनेके लिए उपवास नहीं करते । जैन शास्त्रोंके अनुसार ऐसे उपवास आत्माको आत्मिक कल्याण की ओर बढ़नेमें, हानिके अतिरिक्त कोई लाभ नहीं पहुंचाते । ऐसी तपस्याओंमें जो कष्ट उठाना पड़ता है यद्यपि वह सम्पूर्ण व्यर्थ नहीं जाता तथापि उससे जितना लाभ मिलना चाहिए उसका सहस्रांश भी नहीं मिलता। यह तो हीरेको कौड़ियों के मोल बेचना है । पाठको ! ऐसी तपस्याएं केवल साधु ही नहीं करते परन्तु इस सम्प्रदायके श्रावक और श्राविकाओंमें भी प्रचलित हैं । चातुर्मासमें जहां जहां तेरापन्थी साधु साध्वियां रहती हैं वहां श्रावक श्राविकाओंमें बड़े उमंगसे बड़े आनन्दसे कठोर व दुःसाध्य तपस्या होती है। तेरापन्थी साधुओंकी नियमानुवर्तिता तेरापन्थी संप्रदायमें नियमानुवर्तिता व संगठन पर पूर्ण ध्यान दिया जाता है। समस्त साधुसाध्वियोंको निर्दिष्ट नियमोंका सम्यक् पालन करना पड़ता है । शिथिलाचारको प्रश्रय नहीं दिया जाता। साधुका उद्देश्य आत्मकल्याण है। वे अपनी संयममय जीवनयात्राके निर्वाहार्थ सर्वथा शास्त्रोक्त रीतिसे चलते हैं। तेरापन्थी सम्प्रदाय साधु-समाजको उनके गुणोंके कारण ही पूजनीय एवं वन्दनीय समझती है अतः उनके गुणोंमें कोई फरक न पड़े इसलिये साधु व श्रावक समाज सर्व प्रकारसे साधु समाजके प्रत्येक कार्य-कलाप पर तीक्ष्ण दृष्टि रखता है। जिनके चरणों पर श्रावकोंका मस्तक स्वत: भक्ति भावसे नत होगा उनका आदर्श, उनका चरित्र, उनका आचार उस उच्च पदके योग्य बना रहे यही भावना बलवती रहती है। इनके ऐसे ही कुछ नियमोंका परिचय नीचे दिया जाता है।
SR No.032674
Book TitleJain Shwetambar Terapanthi Sampraday ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Shwetambar Terapanthi Sabha
PublisherMalva Jain Shwetambar Terapanthi Sabha
Publication Year
Total Pages50
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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