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________________ ( २६ ) करते हैं। कहनेका तात्पर्य यह है कि गृहस्थ अपने लिये छूट-आगार रख लेता है परन्तु साधु कोई छूट-आगार नहीं रखते हैं। श्रावक आगार-धर्मी साधु अनागार-धर्मी होते हैं । श्रावक जितने अंशमें इन ब्रतोंको अपनाता है उतने अंशमें वह धर्म पक्ष का सेवन करता है और जितनी छूटे रख लेता है उतने अंशमें अधर्म पक्षका । साधू सम्पूर्ण अंशमें इन व्रतोंको अपनाते हैं अतः वे केवल धर्म पक्षका ही सेवन करते हैं । जेन श्वेताम्बर तेरापन्थी मतके अनुसार श्रावक जितना आगार स्खता है उसके लिये उसे पाप ही होता है। उदाहरण स्वरूप यदि कोई श्रावक यह प्रतिज्ञा करे कि-"मैं अपनी मील ८ घण्टा ही चलाऊंगा अधिक नहीं" तो उसे ८ घण्टा मील चलानेका पाप तो अवश्य ही लगेगा एवं बाकी १६ घण्टेके लिये, जब कि वह आसानीसे मील चला सकता था, त्याग करता है, वह धर्मका कारण है। इसी प्रकार यदि कोई मद्यपायी, साधु समागमके कारण, मद्यपानके दुखद परिणामोंको समझ, त्याग भावनासे, किन्तु अभ्यासके वशीभूत होनेके कारण सम्पूर्णतया मद्यपान त्याग करनेमें असमर्थ हो, यह प्रतिज्ञा करता है कि "मैं आजसे २ प्यालेसे अधिक मदिरा पानका त्याग करता हूं" तो क्या उसे इस प्रतिज्ञाके कारण २ प्याला मदिरा पानका दोष न लगेगा ? उस मद्यपायीने २ प्यालेसे अधिक मद्यपानका त्याग किया यह उसका प्रत है, आज्ञामें है, सराहनीय है न की २ प्यालोंका छुट-आगार जो कि उसने अपनी कमजोरीके कारण रखा है। वह तो पाप ही है। त्यागका वास्तविक मर्म न समझने वाले इसे ठोक तौर पर नहीं समझते एवं आगरको भी धर्म मान बैठते हैं। इस प्रकार श्रावकका खाना पीना, चलना फिरना आदि सारी बातें अव्रतमें है अतः इन सबके कारण उसके निरन्तर कर्म बन्धते रहते हैं परन्तु साधु अनागारी होनेसे उन्हें किसी प्रकारके पाप नहीं लगते । जो न तो साधुकी तरह सर्व-व्रती है और न श्रावककी तरह अणुप्रती, वह सम्पूर्ण असंयती है, उसके लिये पापका रास्ता चारों तरफ खुला है। जो जितने अंशमें व्रतोंको अङ्गीकार करता है
SR No.032674
Book TitleJain Shwetambar Terapanthi Sampraday ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Shwetambar Terapanthi Sabha
PublisherMalva Jain Shwetambar Terapanthi Sabha
Publication Year
Total Pages50
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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