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. [ ७२ ] अध्याय प्रधान विषय
पृष्ठाङ्क का वर्णन ( २६-३८)। ललाट में तिलक का विधान (४०-४५)। ६ त्रिकालसंध्याविधानकथनम् -
एक ही सन्ध्या के कालभेद से तीन स्वरूप-प्रथम काल की ब्राह्मी दूसरे की (मन्याह्न की ) वैष्णवी तीसरे की रौद्री सन्ध्या कही गई है। यही ऋक्, यजु और सामवेदों के तीन रूप है । इनके नित्य ही द्विजमात्र को कर्तव्य इष्ट हैं। सन्ध्या की मुख्य क्रियाओं का विस्तार से परिगणन (१-६८)। गायत्री के जपविधान का कथन (88-१४०)। गायत्री का निर्वचन (१४१
१६३)। जप यज्ञ की महिमा (१६४-१८१ )। ७ जपमालाया विधानकथनम्
४०२४ जपमाला का विधान और जपमाला की प्रतिष्ठा विधि । जप विधान में अर्थ का प्राधान्य और साथ में मनोयोग पूर्वक करने से ही इष्टसिद्धि मिलती है
(१-१२३)। ८ जपे निषिद्धकर्मवर्णनम्
जप में निषिद्ध कर्मों का वर्णन ( १-१२ )। ६ गायत्र्याःसाधनक्रमवर्णनम्
४०३८ गायत्री के साधनक्रम को जानने से ही सद्यः सिद्धि मिलती है अतः उसको जानकर जप किया जाय (१-५०)।