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( ३२ ) अध्याय प्रधान विषय
पृष्टांक करनेवालों का आचरण (४७-५७)। पौर्णमासी का निर्णय ( ५८)।
पुत्रहीन स्त्री के श्राद्ध का विधान ( ५६-६१) पिताहीन को परपितामह के उपस्थित रहने पर श्राद्ध का विधान (६२) श्राद्ध करने की सामग्री और उसका निर्णय (६३-८०)। पितरों की पूजा (८१-८२) सब धर्म कार्यों में धर्मपत्नी को दाहिने
ओर बिठाने का विधान ( ८३-८५)। पूजा में स्त्री को बिठाना और सिर में त्रिपुण्ड लगाने का विधान (८६-१२)। तिल का निर्णय (६३-६७) पूजा, यज्ञ तथा श्राद्धमें मौन रखनेका विधान (६८१००)। श्राद्ध का नियम (१०१-११४ ) । पिण्ड दान और पिण्डपूजन का विधान ( ११५–१३५) जो पितरों का श्राद्ध नहीं करते उनके पितर जूठा अन्न खाकर दुःख में विचरते हैं (१३६–१४२)
जो पितरों का तर्पण नहीं करता वह नरक जाता है ( १४३–१५२ ) । मूर्ख को दान देने की निन्दा (१५३-१५४ ) । श्राद्ध करनेवालों का नियम, श्राद्ध के दिन जो मट्ठा होता है वह गोमांस
और शराब के बराबर होता है। श्राद्ध में बहिनों . और उनके परिवार को निमन्त्रण का महत्त्व