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चाहिये कि इनमें निबद्ध ज्ञानराशि "सवभूतहिते रताः" ऋषियों की साधना है उन्हें उनके व्यापक रूप में देख अपने पढ़ने एवं कर्तव्य-पालन से हमें पूर्ण सहायता मिल सकती है।
भारतवर्ष पर सारे संसार का जो विश्वास और सद्भावना थी कि भारतीय जीवन संसार के सब मनुष्यों को सुख और आनन्द की जीवनी का विधान बनानेवाला है उस सुखमय व सांस्कृतिक जीवन को बनाने का रसायन इन ग्रन्थों से उपलब्ध है। इसलिये भारतीय उपहार स्मृति-संदर्भ को भेंट करते हुए भगवान् की प्रेरणा से हमारे अन्तःकरण में शुभ आशा प्रकट हुई है कि संसार को सुख शान्तिमय जीवन का स्रोत तपोमय विभूति मानवता के आदि संस्कार प्रवर्तक मन्वादि स्मृतिकारों के अनुपम अनुभव जिन्हें स्मृति शास्त्र कहते हैं उनके अनुकूल आचरण करने से प्राप्त होगी।
इस आशा पर हमने सुलभ्य और दुर्लभ्य ४४ स्मृतियों का संग्रह कर स्मृति-सन्दर्भ नाम से अब तक चार खण्ड २५२८ पृष्ठों में संसार के सामने भारतीय स्मार्त उपहार प्रस्तुत किया है। भारत के प्रसिद्ध-प्रसिद्ध पुस्तकालयों में एतदर्थ प्राप्य स्मृति ग्रन्थों के अनुसन्धानार्थ पत्राचार हो रहा है। पञ्चम खण्ड का कार्य बराबर चालू है। ___ काशीस्थ राजकीय संस्कृत महाविद्यालय के प्रधानाचार्य पं० त्रिभुवन प्रसाद उपाध्याय एम० ए० व्याकरणाचार्य एवं तत्रत्य सरखती भवन पुस्तकालय के अध्यक्ष श्री डा० सुभद्र