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( ल ) पाप करने से डरते हैं। राजदण्ड का भय तो तब है जब कोई साक्षी के द्वारा उस दोष या अपराध को प्रकट कर सके। अतः राजशासन के लिये ईश्वर का भय सब से प्रथम होना चाहिये। ___ यह भी विचार हुआ था कि प्रधान-प्रधान भाषाओं में इसका अनुवाद किया जाय जिससे अपनी-अपनी प्रधान भाषा के द्वारा इस संदर्भ का रहस्य प्रत्येक को आसानी से प्रकट हो जाय किन्तु समयाभाव तथा कार्य-विस्तार समझकर इस समय यह विचार पूर्ण करने में असमर्थता रही केवल हिन्दी भाषा में प्रत्येक स्मृति के प्रत्येक अध्याय में जो विषय जिस श्लोक या जितने श्लोंकों में है उसका विवरण हिन्दी में स्वल्पकाल में जितना होना साध्य था उतना किया गया है यह स्मृति संदर्भ का विवरण है।
धर्मशास्त्रों में आनेवाले शब्दों का हमें उनके आधारभूत व्युत्पत्तिलभ्य व्यापक भावों को ध्यान में रखकर अभिप्राय समझना चाहिये। शब्दानुशासन के लौकिक और वैदिक कम को ध्यान देकर हमें प्रकरण सङ्गत अर्थ का व्यापक रूप में प्रकाश करना चाहिये। इन अथाह ज्ञान की राशि स्मृति शास्त्रों का अभिप्राय केवल बहुश्रुत पारदर्शी विद्वान् ही जान सकते हैं। ब्रह्मपुराण की २४२ अध्याय में इस पर व्यापक प्रकाश डाला है।
यो हि वेदे च शास्त्रे च ग्रन्थधारणतत्परः । न च प्रन्थार्थतत्त्वज्ञस्तस्य तद्धारणं वृथा ॥१३॥