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( म ) प्रायः सम्पूर्ण स्मृतिकारों ने सबसे प्रथम सांस्कृतिक जीवनी की जड़ आचार को माना है। उनका मत है कि कितनी भी विद्याओं का ज्ञाता मनुष्य क्यों न हो परन्तु यदि वह आचारहीन है तो विद्वानों की गणना के योग्य नहीं हो सकता है। - श्रेष्ठ पुरुषों के अनुशासन को आचरण बताकर स्मृतियों में आचार प्रकरण में आचार-सदाचार का निरूपण किया गया है। ज्येष्ठ और श्रेष्ठ के लक्षण भी छान्दोग्य में किये हैं। श्रेष्ठ पुरुषों का अनुगमन स्वभावतः उनके अनुगामियों का पथ होता है। “यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जनः" श्रेष्ठ कहने योग्य जो व्यक्ति हो जाय उसको अपने आचरण पर बड़ी सावधानी से ध्यान रखना चाहिये, क्योंकि दूसरे-दूसरे लोग उसके आचरण का अनुकरण करते हैं। इसमें यदि जरा-सी भी असावधानी या इन्द्रिय लोलुपता एवं मानाभिमान से त्रुटि रह गई तो उसके अनुकरण करनेवाले समुदाय का श्रेय तथा अश्रेय का वह ही इस संसार और भगवान के सामने उत्तरदायी है जो उस समुदाय में श्रेष्ठ कहा जाता हो। ___ यद्यपि सांस्कृतिक जीवन बनाना सब स्मृतिकारों का परम . ध्येय है और सांस्कृतिक जीवनी को ही धर्म माना भी है। तो भी इस सांस्कृतिक जीवनी के रक्षकस्तम्भ आचार, धर्म, नैतिकता तथा व्यवहार ही मुख्यरूपेण हैं। ___ कुछ स्मृतिकारों का विचार है कि जब मानवता धर्म और सत्य में रहती थी तब व्यवहार (दण्डनीति ) की आवश्यकता