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( भ ) आचाराध्याय में, सदाचार शिष्टाचार को लेकर सब संस्कार बताये हैं। इन संस्कारों के यथाविधि यथासमय करने से बैजिक एवं गाभिक मल के धुलने से मन्त्रों द्वारा बौद्धिक विकाश एवं मनोबल प्राप्त होता है। शिष्टाचार के साथ-साथ नैतिक, सामाजिक जीवनी का भी विस्तार से निरूपण किया गया है। __द्वितीय प्रकरण व्यवहार का है। इसमें व्यावहारिक जीवनी पर जो गतिरोध आ जाता है उसको उचित रीति पर सञ्चालन के लिये राजशासन, शासक और शास्त्र के नैतिक व्यवहाररूपी कर्म को भी धर्म कहकर उसका विस्तार किया गया है। __ तीसरे प्रायश्चित्त प्रकरण में पापों के प्रायश्चित्त, पाप करने से नारकीय गति का विवरण जिससे जनता अपराध करने से हट जाय और सत्य का आश्रय ले सके यह बताया गया है। प्रायश्चित्ताध्याय में कामज, क्रोधज, अज्ञानज, पाप, अतिपाप, उपपातक, अतिदेश, संकरीकरण एवं मलिनीकरण को दिखाकर उन-उन पापकर्मों के प्रायश्चित्त की विधियां बताई हैं। अन्त में, संन्यास धर्म में संसार की अनित्यता एवं भगवान् की सत्यता बताकर मानव-जगत को सन्मार्ग पर चलने की रुचि प्रदर्शित की है।
इस प्रकार प्रायः सब स्मृतियों का ध्येय है कि मनुष्य सांस्कृतिक जीवन का विकाश कर नैतिक, धार्मिक, व्यावहारिक, एवं सामाजिक जीवन का श्रेय प्राप्त करे। "अभ्युदय निः श्रेयस" का यह अनुपम योग एवं व्यवस्था है।