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( क ) . के तत्व को न जाना कि शूद्र से अङ्ग स्पर्श वर्जित है। मैल को धोना शुद्धता है शारीरिक, मानसिक और कायिक मल
और घर के मैल को धोना मनुष्यता का प्रतीक है । जिस व्यक्ति में मनुष्यता न हो उससे छूतपात करने का विधान इसलिये रक्खा गया है जैसे कि संक्रामक ( Infectious ) रोगाक्रान्त व्यक्ति से बचने का विधान है। अस्पृश्यता शब्द का प्रचलन संक्रामक रोगों के सम्बन्ध से हुआ है। आयुर्वेद शास्त्र के प्रसिद्ध ग्रन्थ चरक में आया है
कुष्ठज्वरञ्च शोषञ्च नेत्राभिष्यन्दमेव च ।
औपसर्गिक रोगाश्च संक्रामन्तिनरान्नरम् ।।
एकशय्यासनाच्च व वस्त्रमाल्यानुलेपनात् । इस प्रकार जिन भावों से संक्रामकता होती है उसे अस्पृश्यता कहते हैं। इस रोगरूपी अस्पृश्यता के संक्रमण न होने देने के उपाय अत्यावश्यक है, चाहे फिर वह मानसिक हो या दैहिक हों।
. संसर्गश्चापि तैः सह (याज्ञवल्क्य स्मृति)।
अस्पृश्यता का संक्रमण विकार से, काल से एवं स्वभाव से होता है।
जैसे, वैद्यक शास्त्र के अनुसार रोगों के संक्रमण होने से एवं धर्म शास्त्रों के अनुसार पापियों के साथ रहने से अस्पृश्यता होती हैं, व्यवहार में तो और भी अधिक रूप में यह स्पष्ट है । देखिये, रजस्वला अस्पृश्य होती है-"प्रथमेऽहनि चाण्डाली द्वितीयेऽ