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________________ आचार प्रकरण में वर्णाश्रम नियम और सत्व, रज, तम इन तीन गुणों के तारतम्य से ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र इन चार श्रेणियों में मनुष्य जाति को विभक्त किया है। उसके अनुसार उनके कर्म जिस कर्म में जिसकी क्षमता है उसे वह कर्म करने का अधिकार दिया गया है, जिससे सृष्टिक्रम सुचारु रूप से चले। इनमें किसी रूपमें उच्च-नीच का भेद नहीं है। कोई छोटा बड़ा नहीं है। जो ज्ञान देता है उसकी सब प्रतिष्ठा करते हैं, परन्तु चारों वर्ण समान हैं और सब जातियों का आधारभूत धर्म आत्मनिष्ठा समान है। ___ इसी प्रकार छूतपात का विचार है। अज्ञान को छूत कहा है, षोडश संस्कारों में जब तक उपनयन संस्कार न हो तब तक बालक से छूतपात होती है। वह उपनयन के बाद ही देव और पितृकर्म करने का अधिकारी होता है। उपनयन संस्कार में “धियो योनः प्रचोदयात्" यह शिक्षा दी जाती है कि हे भगवन् हमारी बुद्धि का विकाश कीजिये। तथाकथित शूद्र जाति को और संस्कारों से वञ्चित रखने का तात्पर्य यह नहीं है कि वह छोटी जाति है अपितु सब वर्णों की सेवा करने से उसपर दुबारा यह संस्कारों का भार सौंपना ( लादना ) नैतिकता नहीं है। सेवा के लिये श्रीमद्भगवद्गीता में आता है-“सर्वभूतहिते रताः।" जो व्यक्ति सर्वभूत के हितरूपी कर्म में अर्थात् सेवा में लगा है उसके लिये और कोई कर्म करने की आवश्यकता नहीं। इसीलिये सभी शास्त्रों में सेवा
SR No.032670
Book TitleSmruti Sandarbh Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaharshi
PublisherNag Publishers
Publication Year1988
Total Pages720
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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