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( ध ) सम्पूर्ण स्मृतियों का तात्पर्य यह है कि चैतन्य जब शरीर में प्रवेश करता है तो अपने स्वरूप को भूल जाता है जिस प्रकार मनुष्य स्वप्न में सांसारिक प्रायः जाग्रत् व्यवहार को भूल जाता है। सृष्टि में विकृति से तथा आसुरी प्रवाह से बचाने के लिये महर्षियों ने अपने संस्मरण को मानव जगत् में भेजा कि इसके अनुसार संसार के जीवन को शान्तिमय बनाकर अन्त में सत्य की प्राप्ति हो जाय और इस बालुका भित्ति की रचना के टूटने पर शोक एवं खेद न हो।
स्मृति शास्त्रों में मुख्य तीन विषयों का निर्णय किया गया है ; आचार, व्यवहार और प्रायश्चित्त । सब से प्रथम आचार को लीजिये आचार हो सांस्कृतिक जीवनी है। आचार प्रकरण में-गर्भाधान से विवाह काल तक के संस्कार और उनकी शिक्षा, अनुशासन, जिससे मनुष्यता का विकाश हो, प्रतिपादित है । ___ संस्कारों के होने से ही सांस्कृतिक जीवनी होती है जो संस्कारों के महत्त्व तथा विज्ञान द्वारा संस्कारों से बौद्धिक, मानसिक आवरण का क्षरण होकर उनका विकाश नहीं जानते हैं उसे सांस्कृतिक जीवन नहीं कहते हैं। संस्कृति एकमात्र स्मृति शास्त्रों से ही ज्ञात होगी। स्मृति शास्त्रों के ज्ञान और तदनुशासित संस्कारों के बिना सांस्कृतिक जीवन नहीं होता है।
कुछ लोग सभ्यता को संस्कृति कहते हैं यह उनकी भूल है सभ्यता तो नैविक जीवन की देन है।