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________________ कारण अज्ञान ही है इसी के होने से इसकी प्रतीति होती है। अज्ञान जब ज्ञान में समा जाता है तब इसकी प्रतोति नहीं रहती है । मरुभूमि में जिस प्रकार काल्पनिक जल की वीचि तरङ्गों के रूप में प्रतीति होती है और कार्य काल में सत्य का ज्ञान हो जाता है ये वीचि तरङ्ग मरुभूमि का ही नाच है और कुछ भी नहीं। इसी प्रकार यह सारा संसार उसी ज्ञान का चमत्कार है। जितनी भी वस्तु होती हैं उनका सम्बन्ध तीन भावों से होता है ; जन्म, स्थिति और लय । इस संसार के प्रादुर्भाव होने के साथ-साथ ऋषि, मुनि, देव, गन्धर्व, मनुष्य आदि जगत् का आविर्भाव हुआ। इस आविर्भाव, स्थिति एवं तिरोभाव को स्मृति शास्त्र ने सुचारु रूप से वर्णन किया है। स्मृति शब्द का अर्थ होता है स्मरण। ऋषियों ने आकाशमण्डल में आदि अव्यक्त नाद की रेखा तरङ्गों को लहराते-लहराते योगबल से देखा। उन लहरों से अक्षर और शब्द जो बने वह ईश्वरीय अनुशासनात्मक भगवद्-वाक्य थे । इसीको दर्शन शास्त्रों में शब्द प्रमाण कहा है । इसी को साहित्यकारों ने ईश्वर के वाक्य कहकर प्रशस्ति गाई है। उस अव्यक्त नाद की स्मरण शक्ति से ऋषियों ने इस भूमण्डल की मर्यादा, नैतिकता, सांस्कृतिकता एवं व्यावहारिकता का जो विस्तारपूर्वक वर्णन किया है उसे स्मृति नाम दिया गया है । स्मृतियां इस समय ६० तक मिल सकी हैं, सम्भव है इस संख्या से भी अधिक धीरे-धीरे जैसा प्रयत्न हो रहा है प्रकाश में आवें।
SR No.032670
Book TitleSmruti Sandarbh Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaharshi
PublisherNag Publishers
Publication Year1988
Total Pages720
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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