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________________ ( थ ) चली आ रही हैं। जहां तक इन्द्रियों को प्रत्यक्षता में सृष्टि का कार्य है वहाँ तक विज्ञान और उसके आगे दार्शनिक विचार धारायें बड़े वेग से प्रवाहित हो रही हैं। ___ दर्शन और विज्ञान के परिशीलन करने से ज्ञात हुआ है कि आधिभौतिक संसार भोग प्रधान है इसको ही आसुरी सर्ग भी कहा है। दूसरी सृष्टि ज्ञान प्रधान है, इसे दैवी संसार कहा है। आसुरी संसार के भौतिक दार्शनिक विचार और पुरुषार्थ, भौतिक आमोद-प्रमोद एवं भौतिक देह के भोगों तक ही सीमित हैं। इसका उदाहरण संसार की व्यावहारिक क्षमता, नैतिक, पुरुषार्थ और दक्षता से स्पष्ट है। ____ यह विचार-धारा संसार में अशान्ति, संघर्ष, अदीर्घजीवन एवं पारस्परिक द्रोह और असमानता की द्योतक है। इसे जड़वाद की विचार-धारा कह सकते हैं। __दूसरी ज्ञानवती धारा है जिसके द्वारा सत्य और शान्ति का अनुभव होता है। इस धारा के लोग दार्शनिक औपनिषद निष्ठावाले होते हैं। यह ज्ञानवती धारा मनुष्य मात्र में ही नहीं बल्कि जीव मात्र में समानता की जनयित्री सत्य की निष्ठात्मक ब्रह्मनिष्ठावाली है। उपनिषद् गीता द्वारा इसी ज्ञानवती धारा की झलक मिलती है। संसार का कारण क्या है ? इसमें भिन्न-भिन्न दर्शनों ने भिन्न-भिन्न प्रकार की रचना, समीक्षा और मीमांसा बताई है। परन्तु वे सब प्रायः प्रत्यक्षवाद पर आश्रित हैं। संसार का यथार्थ
SR No.032670
Book TitleSmruti Sandarbh Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaharshi
PublisherNag Publishers
Publication Year1988
Total Pages720
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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