SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 96
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अन्याय [ ६१ प्रधानविषय बार पाठ करने से शातासांत उपपातकों से शुद्ध हो जाता है (१-७)। ६प्र०३ आत्मकृतदुरितोपशमायप्रसृत यावकस्यहवनविधिवर्णनम्। १८५३ दुरित क्षयार्थ एक प्रस्थ यव के हवन का विधान (१-२१)। अ०३ माण्डहोमविधिवर्णनम् । १८५५ कूष्माण्डी भृचा "यद्देवा देव हेन" इत्यादि तीन मन्त्रों से हवन करने से ब्रह्मचारी के स्वप्नदोष आदि प्रायश्चिच का विधान है (१-२२)। ८५०३ चान्द्रायणकल्पाभिधानवर्णनम् । . १८५६ चान्द्रायण कल्प का विधान बताया है (१-४० )। १०३ अनश्नत्परायणविधिन्याख्यानम् । १८५६ निराहार व्रत या फलाहार व्रत कर जो मन्त्र इसमें लिखे हैं उनसे हवन करने से चक्षु का प्रकाश बढ़ेगा (१-२१)।
SR No.032669
Book TitleSmruti Sandarbh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaharshi
PublisherNag Publishers
Publication Year1988
Total Pages744
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy