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अन्याय
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प्रधानविषय बार पाठ करने से शातासांत उपपातकों से शुद्ध
हो जाता है (१-७)। ६प्र०३ आत्मकृतदुरितोपशमायप्रसृत
यावकस्यहवनविधिवर्णनम्। १८५३ दुरित क्षयार्थ एक प्रस्थ यव के हवन का विधान
(१-२१)। अ०३ माण्डहोमविधिवर्णनम् । १८५५
कूष्माण्डी भृचा "यद्देवा देव हेन" इत्यादि तीन मन्त्रों से हवन करने से ब्रह्मचारी के स्वप्नदोष
आदि प्रायश्चिच का विधान है (१-२२)। ८५०३ चान्द्रायणकल्पाभिधानवर्णनम् । . १८५६
चान्द्रायण कल्प का विधान बताया है (१-४० )। १०३ अनश्नत्परायणविधिन्याख्यानम् । १८५६
निराहार व्रत या फलाहार व्रत कर जो मन्त्र इसमें लिखे हैं उनसे हवन करने से चक्षु का प्रकाश बढ़ेगा (१-२१)।