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[ १० ] अन्याय
प्रधानविषय २५०३ पग्निवर्तन्यादिवृत्तीनांस्वरूपकथनम् १८४६
पनिवर्तन्यादि वृत्तियों का स्पष्टीकरण है, पण्निवर्तनी, कोदाली आदि का विशदीकरण है तथा
शिलोच्छ वृत्ति की परिभाषा (१-३८)। ३५०३ पचमानकापचमानकमेदेनवानप्रस्थस्य
विध्यवर्णनम्---- १८४६ दो प्रकार के वानप्रस्थ-पचमानक और अपचमानक के लक्षण तथा उनके धर्म, वन में रहने का माहात्म्य (१-२५)। मृगैः सहपरिस्पन्दः संवासस्ते(स्त्वे)मिरेव च ।
तैरेव सदृशीवृत्तिः प्रत्यक्षं स्वर्गलक्षणम् ॥ ४५०३ ब्रह्मचारिणअभक्ष्यभक्षणेप्रायश्चित्तवर्ण० १८५१
ब्रह्मचारी को स्त्री के सहवास तथा निषेध पदार्थों
के भक्षण में प्रायश्चित्त का निरूपण (१-११)। ५५०३ अघमर्षणकल्पव्याख्यानवर्णनम् । १८५२
तीर्थ में जाकर सूर्याभिमुख होकर अघमर्षण सूक्त प्रातः, मध्याह्न और सायं तीन काल में एक सौ