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________________ तया [4] बनाय . प्रधानविषय होता है “सत्पुत्रमुत्पाधाऽऽत्मनं तारयति" सत्युत्र की महिमा कही है (१-१६)। १०५०२ संन्यासविधिवर्णनम् । १८३७ भोजनेचन्यादीनांपाससंख्यावर्णनम् १८४१ संन्यास की विधि-संन्यास का धर्म विस्तार से निरूपण कर इसी के परिशिष्ट १७ सूत्रों में उसका विधान, "शालीन यायावरों" का आचार, संन्यासी के त्रिदण्ड का माहात्म्य बताया है (१-८६)।... १५०३ शालीनयायांवरादीनांधर्मनिरूपणम् १८४४ शालीन और यायावरों की वृत्ति तथा धर्म का निरूपण किया है। शाला में आश्रय करने से शालीन एवं श्रेष्ठ वृत्ति के धारण करने से यायावर। इनकी नौ प्रकार की वृत्ति बताई है। जैसे१ षनिवर्तनी, २ कोदाली, ३ कुल्या, ४ संप्रक्षालनी, ५ समूहा, ६ पालिनी, ७ शिलोव्छा, ८ कापोता, ह सिद्धा । इनके अतिरिक्त दशम वृत्ति भी बताई है। आहिताग्नि तथा यायावर की कृति का वर्णन है (१-२०)।
SR No.032669
Book TitleSmruti Sandarbh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaharshi
PublisherNag Publishers
Publication Year1988
Total Pages744
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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