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प्रधानविषय . प्रजापति, साम, रुद्रादि देवत तर्पण विस्तार से
निरूपण किया है (१-२१२)। ६०२ पञ्चमहायज्ञविधिवर्णनम्- १८२७ - आश्रमधर्मनिरूपण वर्णनम्- १८२६
पांच यहायज्ञों की विधि (१-४४)। अ०२ शालीनयायावराणामात्मयाजिनां
प्राणाहुति न्याख्यानम्- १८३० शालीन ययावरों को प्राणाहुति की विधि तथा
मन्त्रों का निरूपण (१-३०)। . . ८५०२ श्राद्घाङ्गामौकरणादिविधिनिरूपणम् १८३३
त्रिमधु, त्रिणाचिकेत, त्रिसुपर्ण, पञ्चामि, षडङ्गवित् ज्येष्ठ सामक, स्नातक ये पक्ति पावन बताये हैं। इनके द्वारा श्राद्ध में अग्नि कार्य के विधान का
निरूपण किया है (१-३१)। १०२ सत्पुत्रप्रशंसावर्णनम् । १८३६
सत्पुत्र का वर्णन किया है “पुत्रेण लोकाञ्जयति" माजी सन्तान से पिता स्वर्गादि लोक में विजयी