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[ ८३ ] अध्याय
प्रधानविषय उत्तर में यह अध्याय है। इस अध्याय में
स्नातक के नियम एवं व्रत हैं (१-१३)। ४५०१ कमण्डलुचर्याभिधानवर्णनम् । १७७५
स्नातक के शौचाचार, कमण्डलु से जल के प्रयोग
का विधान एवं रीति बताई गई है (१-२८)। ५५०१ शुद्धिप्रकरणवर्णनम् । १७७७
प्रथम प्रश्न के ही प्रसंग में इस अध्याय का वर्णन किया है। शुद्धि का विधान है। यथाअद्भिः शुध्यन्ति गात्राणि बुद्धिानेन शुध्यति । अहिंसया च भूतात्मा मनः सत्येन शुध्यति, इति ॥ यहां से शरीर, बुद्धि, देह और मन की शुद्धि बताकर यज्ञोपवीत धारण की रीति तथा उसकी शुद्धि, पादप्रक्षालनादि, नदी में मान. की रीति, वस्तु भाण्डादि की शुद्धि, अविज्ञात भौतिक जीवों की षट् प्रकार की शुद्धि, आसन, शम्या और वस्त्र की शुद्धि के सम्बन्ध में, शाक, फल, पुष्पों की प्रक्षालन से ही शुद्धि बताई है। अशौच में सपिण्डता को लेकर दस दिन में शुद्धि