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[ ७६ ] अध्याय प्रधानविषय
पृष्ठाङ्क ण्डता होने पर भी कोई अशुभ कर्म प्रेत कृत्य मुण्डनादि करने का निषेध बताया है (१-६)।
२० प्रेतकर्मविधिवर्णनम् ।
१७४० पुत्र को पिता आदि का प्रेत कर्म, शव दाह आदि प्रेत कर्म करने का विचार। अशौच का निरूपण दिखाकर अन्त में आत्मनिष्ठ को किसी प्रकार का .
अशौच नहीं लगता है ( १-१२)। २१ लोकेनिन्धप्रकरणवर्णनम् ।
१७४९ सदाचार भ्रष्ट क्रियाहीन की निन्दा तथा निन्दित कर्म से उत्पन्न सन्तान असंस्कृत है जिनके यहां यजन करने वाले ब्राह्मणों को निन्दित बताया है
(१-१६ )। २२ वर्णधर्मप्रकरणवर्णनम्
१७५१ वर्णधर्म-ब्राह्मण की श्रेष्ठता यदि वह वेदज्ञ हो, वेदों का उपदेश कर्ता हो। ब्राह्मण का अपमान करना एवं उससे सेवा कराने में पाप बताया है (१-२४)।